Tuesday, July 31, 2007

जिंदगी नहीं मौत बेचते हैं निजी अस्पताल

खास खबर टेस्ट और परीक्षण के नाम पर डाक्‍टरों ने मचाई है लूट

भिलाई एक ऐसा शहर है जहां हर सुख सुविधाएं तो मुहैया है ही साथ ही भिलाई प्रबंधन ने चिकित्सा के नाम पर बड़े से बड़े डा टर और अच्छे उपकरणों को लाकर चिकित्सा के क्षेत्र में अपना अलग स्थान बनाया. पूरे छत्तीसगढ़ में कोई भी गंभीर हादसा या खतरनाक बीमारी होती तो उसका अंतिम इलाज कराने में भिलाई इस्पता ही आते हैं और यही से शुरु हुआ चिकित्सकों का मायाजाल जिसमें भिलाई के अस्पताल से डा टरों को तोड़ना शुरु किया गया और निजी अस्पताल खुलने लगे. जो भी डा टर बीएसपी छोड़कर निजी अस्पताल में जाता या खोलता उसमें अपने नाम के साथ पूर्व चिकित्सक बीएसपी जरुर लिखता इससे मरीजों को यकीन और सही इलाज की तसल्ली होती. इसी का लाभ उठाते हुए आज भिलाई और छत्तीसगढ़ में सैकड़ों ऐसे डा टर हैं जो बीएसपी छोड़कर अलग प्रेि टस कर रहे हैं और इसी होड़ में चिकित्सा का व्यवसाय आज सर चढ़कर बोल रहा है. वहीं दूसरी तरफ से टर े और सरकारी अस्पतालों को बदनाम करने की साजिश रच कर निजी चिकित्सालयों ने अपने अस्पताल को एक निजी इंडस्ट्री के रुप में स्थापित किया है और आज चिकित्सा इंडस्ट्री का जाल फैलता ही जा रहा है.

रायपुर.
निजी अस्पतालों में डाक्‍टर जिंदगी नहीं मौत बांटते हैं.

एक बार कोई मरीज गलती से भी वहाँ पहंुच जाए तो उसकी चमड़ी तक उतारने वाले डा टर अपने निजी अस्पतालों में गिरोह बनाकर काम करते हैं. टेस्ट के नाम पर एक दूसरे डा टर को इस प्रकार रेफर करते हैं मानों मरीज अपनी जेब में हजारों रूपए रखकर अस्पताल पहु ंचा हो. टेस्ट और परीक्षण के नाम पर मरीज को निजी अस्पतालों में भर्ती कर कमरे और बेड का चार्ज भी वसूल कर लेते हैं.हालांकि जब भी कोई छोटा बड़ा निजी अस्पताल खुलता है वह सेवा और निर्धनों को कम शुल्क पर इलाज करने का दावा करता है, लेकिन वास्तव में उनका असली चेहरा बहुत डरावना और खूंखार होता है. मरीज का हौंसला बढ़ाने की अपेक्षा उसके मन मष्तिक पर ऐसा मनोविज्ञानिक दबाव यह डाक्‍टर डालते हैं कि मरीज बेचारा अपनी जिंदगी बचाने के लिए अपनाा घर द्वार, जमीन जायदाद तक बेचकर इलाज कराने को विवश हो उठता है.इन डा टरों की असलियत यह है कि बड़े निजी अस्पताल में मरीज का केवलफर्स्ट एक ही होता है. किसी भी बीमारी का कोई स्थाई इलाज इन डा टरों के पास नहीं है. मिसाल के तौर पर प्रचलित बिमारियों जैसे हदयरोग,किडनी, डायबटीज,व्हीपी आदि रोग कभी डाक्‍टर जड़ से खत्म नहीं कर सकते. मरीज को परहेज और फौरी इलाज के बल पर ही जिंदा रखते हैं, फिर बाद में उसे मरना तो है ही. बाई पास सर्जरी का खर्चा लाखों में होता है. पर यह जीवन बचाने का कोई स्थाई समाधान नहीं है.बाईपास सर्जरी कराने वालों व्यक्ति की जिंदगी दो तीन साल तक अवश्व बढ़ जाती है, लेकिन फिर मौत को ही गले लगाना है. यह सर्जरी छत्तीसगढ़ में नहीं होती दिल्ली, मुंबई या चेन्नई आदि शहरों में जो बड़े अस्पतालों हैं, वहाँ भी इन डाक्‍टरों का कमीशन बंधा है. कमीशन तो यह मेडिकल स्टोर से भी वसूल कर लेते हैं.गर्भवती महिलाआें को लेकर तो निजी अस्पतालों के डा टर काफी निर्दयी होते हैं. महिला को भले ही सामान्य डिलीवरी होने वाली हो पर डा अर उसका आपरेशन करने से बाज नहीं आएंगे. कुछ न कुछ ऐसा बहाना बताएंगे कि महिला के परिजनों को आपरेशन करवाना ही पड़ेगा. इस प्रकार के जबरन इलाज के कारण कई लोग डा टरों की ऊँची फीस पटा नहीं पाते और अपने बच्चें या पत्नी को छाे़डकर भागने के लिए मजबूर हो जाते हैं, जिससे उनके परिवारिक रिश्तों में दरार पैदा हो रही है. जब भी कोई मरीजनिजी अस्पताल में भर्ती होने जाता है तो उससे दो-चार हजार रूपए तुरंत जमा करने को कहा जाता है. जो व्यक्ति पैसे जमा करने में सक्षम नहीं होता, उसका इलाज रोक दिया जात है. डा टर बीमारी समझते तक नहीं और मरीज का टेस्ट और परीक्षण शुरू कर उससे भारीफीस वसूलना शुरू कर देते हैं. कन्याआें की भ्रूण हत्या करने में तो निजी अस्पतालों का कोई सानी नहीं है. यही कारण है कि एक झोपड़ी से अपनी प्रेि टस शुरू करने वाला वाला डा टर करोडों रूपए के आलीशान अस्पताल का मालिक कैसे बन जाता है यह भी प्रकार समझा जा सकता है.डाक्‍टरों में मची होडइन दिनांे निजी अस्पतालों मे काम करने वाले डा टरों मे वर्चस् की हाे़ड मची हुई है. हर नया अस्पताल अच्छे डा टर को अपनी तरफ खींचना चाहता है. इसलिए डा टरों को जहाँ अच्दा वेतन और सुविधाएं मिलते हैं वह अपना नर्सिंग होम छाे़डकर दूसरे मंे चले जाते हैं. कई डा टर तो अपने साथ अस्पताल का स्टाफ भी ले जा रहे हैं. इससे नर्सिंग होमों की हालत खसता हो गई है. अस्पताल में मरीजों को देखने और उनका इलाज करने वाले डा टरों का भारी टोटा हो गया. इससे अस्पताल की साख तो गिर ही रही है, उसकी आर्थिक स्थिति भी चरमरा गई है.डायरे टरों के सामने भवन किराया और स्टाफ कीफीस निकालना मुश्किल हो गया है. इसक भारी बोझ मरीजों की भारी फीस देकर चुकाना पड़ रहा है. यह भी देखा जा रहा है कि कुछ डा टर मिलकर पार्टनरशिप में एक नर्सिंग होम खोलते हैं, मगर चढ दिनों बाद ही पैसों के लेनदेन को लेकर उनमें हाे़ड मच जाती है. उसमें से अलग होकर फिर कोई डा टर अपना नया अस्पताल खोल लेता है. राज्य में निजी अस्पतालों के लिए कोई कारगर व ठोस नीति नहीं होते केक कारण हर शहर में निजी अस्पतालों की संख्या लगातार बढ़ती चली जा रही है, जो अंतत: जनता को लूटने के कारोबार में लगे है.

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