Tuesday, July 31, 2007

भिलाई नगर निगम क्षेत्र में दो हजार एकड जमीन पर अवैध कब्‍जा

भिलाई शहर की बढ़ती आबादी को देखते हुए तत्कालीन मध्यप्रदेश शासन में क्ेस्त्रम् के आसपास विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण का गठन किया था जिसके तहत बीएसपी के अलावा झुग्गी-झोपड़ियों एवं ग्रामीण क्षेत्र में विकास के साथ-साथ नई योजना डबलप हो सके इसके लिए क्ेत्त्० में मास्टर प्लान प्रकाशित किया गया था. जिसमें यह कल्पना की गई थी कि भिलाई एक ऐसा शहर ही नहीं बल्कि ऐसी जगह बसा है जहां सुविधाआें का विकास हो सकता है. पब्लिक से टर होने के नाते बहुत सी योजनाएं लागू करने की योजना थी जिससे शहर दो भागों में नजर आएगा. एक तरफ संयंत्र प्रबंधन का टाउनशिप दो दूसरी तरफ भ्त्त् गांव सहित भिलाई का वह पिछड़ा क्षेत्र था जिसकी कल्पना विकास के लिए की गई थी इसमें आवासीय, व्यवसायी योजनाआें के अलावा स्कूल, कालेज, होटल, सिनेमा और मनोरंजन की कई योजनाएं सम्मिलित की गई थी. मास्टर प्लान बनाते समय इस बात का ख्याल रखा गया था कि आने वाले दिनों में भिलाई एक नए स्वरुप में ढल सकेगा. भिलाई इस्पात संयंत्र ने साडा को लगभग ख्भ्म्ब् एकड़ भूमि दी थी जो तीन चरणों में थी इस तरह ख्भ्म्ब् एकड़ भूमि में बसने वाले साडा क्षेत्र में मास्टर प्लान को कल्पनाआें के साथ प्रकाशित किया गया था. क्ेत्त्ब्, क्ेेत्त् और ख्००फ् में मध्यप्रदेश शासन में लगभग भ्० हजार पट्टे आवासहीन लोगों को आबंटित कर दिए थे. इस तरह साडा क्षेत्र में लगभग क्०० एकड़ भूमि पट्टे, सड़क, नाली में उपयोग कर ली गई थी. शेष जमीनों का विकास करना था. आबंटित जमीन के अलावा शेष जमीनों का व्यवस्थापन के जरिए योजनाआें को जोड़ा गया था जो निश्चित ही व्यवस्थापन के बाद साडा को लगभग भ् से स्त्र सौ करोड़ रुपया उपलब्ध होता और शहर नए रुप में ढल सकता था लेकिन क्ेेत्त् में जैसे ही साडा भंग कर नगर निगम बना लिया गया तभी से साडा क्षेत्र की झोपड़ियों के बटे पट्टे और अवैध कब्जों की जमीन न तो व्यवस्थापन की गई और न ही इसके चलते विकास हो सका. आज भिलाई को अगर सही विकास के रुप में तब्दील करना है तो सबसे पहले लगभग दो हजार एकड़ जमीन जो आज भी अवैध कब्जों की शिकार है उसका व्यवस्थापन किया जाए जिससे निगम को वर्षों तक राजस्व मिलता रहेगा और इसके विकास के लिए शासन भिलाई विकास प्राधिकरण का गठन करे जिसके अंतर्गत शहर का विकास हो सके. पड़ोसी शहर रायपुर में जिस तरह से नगर निगम के साथ-साथ रायपुर विकास प्राधिकरण का गठन किया गया यही कारण है कि आज रायपुर शहर नई-नई योजनाआें में न केवल नए स्वरुप में ढला है बल्कि एक आकर्षक शहर बन गया है. इसी तरह यदि भिलाई में भी बीडीए बनाया जाए तो भिलाई के हजारों एकड़ भूमि का व्यवस्थापन होगा और आकर्षक योजनाएं शहर के विकास में अपनी अहम भूमिका अदा करेंगी और शहर नए रुप में ढल सकेगा. ख्भ्-फ्० साल बाद भी भिलाई शहर में आज भी हजारों झोपड़ियां बसी हैं जिनके मालिक अपनी झोपड़ी का व्यवस्थापन चाहते हैं. शासन यदि इस ओर गंभीरता के विचार करे और बीडीए का गठन करे तो निश्चित ही भिलाई शहर मास्टर प्लान के अनुरुप नए स्वरुप में ढल सकता है.

भिलाई. छत्तीसगढ़ में नगर पालिक निगम भिलाई एक ऐसी निगम है जिसका पूरे प्रदेश के निगमों से बड़ा बजट ही नहीं बल्कि आय का स्रोत भी सबसे अधिक है. आज भी यदि भिलाई क्षेत्र में अवैध कब्जे की शिकार दो हजार एकड़ भूमि का व्यवस्थापन जिसमें आवासीय और व्यवसाय दोनों ही तरह के भूखंडों को व्यवस्थापन के जरिए बेचा जाए तो नगर पालिक निगम के अलावा बीडीए को क् अरब से अधिक का राजस्व तो मिलेगा ही साथ ही भिलाई शहर का वर्षों पुराना बना मास्टर प्लान नए आधुनिक शहर में तब्दील हो सकेगा. नगर पालिक निगम के अधिनियमों के तहत विकास कार्यों की सीमाएं हैं जिसमें नाली, पानी, सड़क के अलावा अन्य दूसरी योजनाआें में निगम कार्य नहीं कर सकती. इसलिए यदि भिलाई में साडा की तरह अगर बीडीए बनाया जाता है तो निश्चित ही भिलाई शहर का स्वरुप बदल सकता है.क्ेस्त्रम् में तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार ने भिलाई शहर को विकसित करने के लिए विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण का गठन कर भिलाई के स्वरुप को बदलने के लिए कदम उठाकर भिलाई इस्पात संयंत्र प्रबंधन से तीन चरणों में भूमि वापिस ली थी. पहले चरण में क्ेख्० एकड़ दूसरे चरण में ख्े० एकड़ और तीसरे चरण में उद्योगविभाग से लेकर साडा को सौंपते हुए भ्त्त् गांव को भी विकास कार्यों में समावेश किया था. जुनवानी खम्हरिया से लेकर पुरैना गांव तक फैले पूरे क्षेत्र को विकास करने के लिए साडा ने नया मास्टर प्लान बनाते हुए शहर को नए रुप में बदलते हुए आवासीय, व्यवसायिक, सामुदायिक एवं बायपास मार्ग से कई बड़े एप्रोच रोड जोड़ने का प्रस्ताव किया था. साडा अभी विकास कर ही रही थी तभी शासन ने क्ेत्त्ब्, क्ेत्त्त्त्, क्ेेत्त् और ख्००फ् में लगभग म्० हजार पट्टा वितरण कर लोगों को मालिकाना हक दिया था. इस तरह ख्भ् हजार एकड़ भूमि में भ्०० एकड़ में रोड, नाली एवं विकास में लगा दी गई. शेष ख्० हजार एकड़ भूमि आज भी पट्टेधारियों के कब्जे में है. शासन ने ख्भ् वर्गमीटर से लेकर भ्० वर्गमीटर तक के पट्टे वितरण किए हैं जिनमें ब्० प्रतिशत पट्टों का साडा ने व्यवस्थापन कर उनका पंजीयन कर दिया था. यह कार्य चल ही रहा था कि मध्यप्रदेश शासन ने वर्ष क्ेेत्त् में साडा को भंग कर नगर पालिक निगम का गठन कर दिया. तब से लेकर आज तक नगर पालिक निगम किसी भी पट्टेधारी भूमि स्वामी का व्यवस्थापन नहीं कर पा रही योंकि निगम ने व्यवस्थापन का प्रावधान नहीं है.आज भिलाई में यदि भिलाई विकास प्राधिकरण और टाउनशिप में स्टील सिटी बना दी जाती है तो दो नई संस्थाएं शहर के विकास में अलग-अलग योजनाएं लागू कर शहर का स्वरुप बदल सकती है. मिशाल के तौर पर यदि स्टील सिटी बनती है तो भिलाई इस्पात संयंत्र प्रबंधन स्टील सिटी को विकास करने के लिए जिम्मेदार होगा वहीं बीडीए बनता है तो पटरी के इस पार क्० से क्ख् लाख लोगों की बस्ती का विकास अलग-अलग योजनाआें से तो करेगा ही साथ ही आवासीय और व्यवसायी योजनाआें से शहर का स्वरुप बदल सकता है. आज यदि सर्वे किया जाए तो सैकड़ों ऐसे पट्टेदार मिलेंगे जिनके पास पट्टा ख्भ् से फ्० वर्गमीटर का है लेकिन उसके पास कब्जा क् एकड़ से अधिक है. नगर पालिक निगम को इन पट्टेधारियों से न तो कोई राजस्व मिलता है और न ही कोई सम्पत्तिकर आज यदि इन पट्टेधारियों का व्यवस्थापन कर शासकीय मूल्य के तहत भूमि का पंजीयन किया जाता है तो करोड़ों रुपए का राजस्व पंजीयन में तो मिलेगा ही साथ ही निर्धारित मूल्य की राशि निगम और बीडीए में अरबों रुपए की आ सकती है. इतना ही नहीं बीडीए द्वारा व्यवस्थापित भूमि के बाद बनने वाले बिल्डिंग में निगम को बिल्डिंग परमीशन शुल्क तथा भू-भाटक और बिल्डिंग बनने के बाद संपत्तिकर हर वर्ष करोड़ों रुपया आएगा. इस तरह नगर पालिक निगम के बजट में राजस्व की राशि दोगुनी बढ़ जाएगी. वहीं बीडीए बनने के बाद एक नई संस्था शहर के विकास का संचालन करेगी जिससे ख्-फ् साल के अंदर सारी झोपड़ियां बड़ी-बड़ी बिल्डिगों में तब्दील हो जाएंगी, केवल इन पट्ट ों के व्यवस्थापन में ही निगम और बीडीए को भ्०० करोड़ से अधिक रुपए मिलेंगें साथ ही चौराहों, तालाबों, मंगल भवनों, सुलभ शौचालयों, खेल परिसर और उद्यान परिसरों जैसी कई योजनाएं बीडीए बनाकर शहर को नए रुप में ढाल सकेगा. बीडीए संचालन में वही टीम होगी जो पूर्व की साडा में थी और शहर की सुंदरता और विकास की योजनाआें के साथ भिलाई नए परिवेश में ढल सकेगा. आज नगर निगम करोड़ों रुपया का बजट बनाकर केवल सड़क, पानी, बिजली, नाली, साफ-सफाई में ही खर्च कर शहर को विकास करने का दावा करती है लेकिन इससे शहर का विकास नहीं कहा जा सकता चूंकि भिलाई एक पब्लिक से टर क्षेत्र है और यहां का मास्टर प्लान जिस स्वरुप के साथ बनाया गया था उसमें एक अच्छे शहर की कल्पना की गई थी. म्स्त्र वार्डों में बटी यह नगर पालिक निगम न तो अवैध कब्जे रोक पा रही है और न ही वर्षों से अवैध कब्जों से शिकार भूमि को खाली करा पा रही है आज रिकार्ड बताते हैं कि भिलाई में दो हजार एकड़ जैसी कीमती जमीन अवैध कब्जे की शिकार है शायद यह छत्तीसगढ़ में पहली नगर पालिक निगम है जिसका इतना बड़ा फैला और इतनी लम्बी चौड़ी जमीन अवैध कब्जे में चली गई है जिसे मुक्त कराने के लिए कोई प्रावधान नहीं है. इसका एक ही रास्ता है कि यदि बीडीए बनता है तो निश्चित ही यह संस्था पट्टों के साथ-साथ उस भूमि का भी व्यवस्थापन कर देगी और उसमें शासन के निर्धारित दर के हिसाब से उसकी राशि भी जमा होगी जो अरबों रुपए तक जा सकती है. नगर पालिक निगम के पहले चुनाव से पहले टाउनशिप वासियों ने लम्बा-चौड़ा आंदोलन किया था उनकी मांग थी कि भिलाई में स्टील सिटी बनाई जाए जिसका संंचालन भिलाई प्रबंधन करे और टाउनशिप का स्वरुप अच्छे ढंग से बदल सके. टाउनशिप को वार्डों में बदलने का पुरजोर विरोध किया गया था लेकिन बाद में मध्यप्रदेश सरकार ने चुनाव घोषित कर दिए और टाउनशिप वार्डों में तब्दील हो गया. नगर निगम बनने के बाद भिलाई प्रबंधन ने विकास का अपना हाथ खींच लिया और नतीजा टाउनशिप निरंतर खंडहर में तब्दील होता चला गया. आज नगर निगम भिलाई टाउनशिप क्षेत्र में विकास नहीं करती वहीं भिलाई प्रबंधन भी विकास कार्य में ढिलाई बरत रहा है. पिछले दिनों इस्पात मंत्री रामविलास पासवान जब भिलाई आए थे तब उन्होंने स्टील सिटी बनने की घोषणा की थी तब से अभी तक स्टील सिटी तो बनी नहीं लेकिन टाउनशिप निरंतर गंदगी और बरबादी की ओर चला गया. आज भी भिलाई वासी चाहते हैं कि भिलाई में स्टील सिटी बने और सेकटरों का रखरखाव, विरान होते गार्डन, खंडहर होेते मंगल भवन और बंद होते स्कूलों का भविष्य सुधर सके. इधर, भिलाई वासी भी वर्षों से झोपड़ी में रह कर अपनी नई जिंदगी जीने के लिए अपने पट्टे का व्यवस्थापन कराना चाहते हैं जिससे उनका मकान नए ढंग से बने और उनको मालिकाना हक मिल सके. जिससे वे अपने भवन में रह कर शहर का स्वरुप और निगम को राजस्व दे. यही आशाआें के साथ पिछले भ् वर्षों से लोगों को बीडीए और स्टील सिटी की घोषणा का इंतजार है. राजनीतिक खींचतान भले ही बीडीए को बनाने में विलंब कर रहा हो लेकिन सच्चाई यह है कि भिलाई का विकास यदि शासन चाहती है और निगम को राजस्व में वृद्धि करना है और भिलाई वासियों को विकास कार्य की ओर ले जाना है तो भिलाई में भिलाई विकास प्राधिकरण और टाउनशिप में स्टील सिटी बनाना बहुत जरुरी है.

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