Saturday, August 4, 2007

इस्पात माफियाओं के शिकंजे में भिलाई संयंत्र



संयंत्र के अंदर बैठे भ्रष्ठ अधिकारी लगा रहे हैं संयंत्र को करोड़ों का चूना

भिलाई इस्पात संयंत्र आज इस्पात उत्पादन में जितनी उंचाईयां छू रहा है वहीं संयंत्र पर इस्पात माफियाओ ने भी अपने कब्जों को और मजबूत करना प्रारंभ कर दिया है. वैसे तो भिलाई इस्पात संयंत्र में इस्पात माफियाओं ने कहीं न कहीं संयंत्र को करोड़ों का चूना लगाया है लेकिन संयंत्र प्रबंधन और सेल विभाग ने भिलाई इस्पात संयंत्र को हमेशा कमाउ संयंत्र मानते हुए उस पर भ्रष्टाचार की उठने वाली उंगलियों पर हमेशा गंभीरता से कदम उठाया है. स्टील उत्पादन हो या बाय प्रोड ट या फिर इस्पात का रिजे ट माल हो. इन इस्पातों में देश भर के ट्रेडर्स और इस्पात निर्माताओं ने संयंत्र को कहीं न कहीं अपना निशाना बनाया है. आज भी संयंत्र के अंदर बैठे भ्रष्ट अधिकारियों की मिली भगत से इस्पात माफिया अपने कामों में सफल रहते हैं. हाल ही में हुए म डम कांड के घोटाले से भले ही दुर्ग के सांसद ताराचंद साहू ने इस्पात माफिया लाखोटिया को रिश्वत देतेे गिरफ्तार करवा दिया हो लेकिन इस कांड में ताराचंद साहू और लाखोटिया के अलावा संयंत्र के अंदर बैठे अधिकारी और बाहर चला रहे संयंत्र के प्रबंधन पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है.

भिलाई इस्पात संयंत्र के इतिहास में भ्रष्टाचार के कई ऐसे मामले आए जिसमें सीधे जीएम और अब एमडी जैसे पदाधिकारी कटघरे में आ जाते हैं. लगभग फ्भ् साल पूर्व इसी संयंत्र में जब कलकत्ता की एक स्टील ट्रेडर्स कंपनी ने मकडम का ठेका लिया था उस वक्त तत्कालीन जीएम श्री शिवराज जैन और राजनांदगांव के पूर्व कांग्रेसी नेता स्व. इंदरचंद जैन का नाम इस मकडम कांड में इतना उछला था जो दिल्ली के पारलियामैन में भी उठाया गया था तभी से भिलाई इस्पात संयंत्र के भ्रष्टाचार की फैरिस्ट में सबसे ऊपर है. जब भी मकडम का नाम आता है तो भिलाई का मकडम कांड सामने आ जाता है जिसमें संयंत्र के कई अधिकारी निलंबित हुए हैं. भिलाई इस्पात संयंत्र से मकडम निकालने की प्रक्रिया हमेशा से विवादों में रही है. पहले मकडम में जाने वाली स्किल को उपयोग में न लाकर उसे कचरे के रुप में देखा जाता था और इसलिए उसे बाहर फेंका जाता था जबकि वास्तव में ब्लास्ट फर्निस से निकलने वाले स्लेग को कचरा माना जाता है लेकिन इसके ठेकेदार संयंत्र के अंदर अपनी इतनी पकड़ रखते हैं कि ब्लास्ट फर्निस से निकलने वाले स्लेग के लेडल में लोहा भी गिरा देते हैं जो स्लेग के साथ एक पिंड के रुप में निर्मित हो जाता है जिसे संयंत्र के बाहर पुरैना गांव के पास मकडम यार्ड में फेंका जाता है और इसी कचरे का ठेका बड़ी-बड़ी कंपनियां लेती है जिन्हें कटरे की आड़ में लोहे का भंडार मिल जाता है. भिलाई के पहले मकडम कांड के बाद मकडम ठेकेदारों में कई कंपनियां आई लेकिन सबसे अधिक ठेका भिलाई की एमआर एसोसिएट्स (निको ग्रुप) ने ही लिया. दो साल पहले मकडम के ठेके में एमआर एसोसिएट्स ने भाग ही नहीं लिया और कलकत्ता की कंपनी के मालिक श्री लाखोटिया ने भिलाई में टेंडर भर दिया. कई महीने तक मकडम के ठेकेदारों का विवाद चला बाद में मामला सेट हो गया और कलकत्ता की यह कंपनी मकडम यार्ड से कचरा निकालने लगी और कचरे के साथ-साथ लोहा कैसे निकलता है और कौन लोहा इसमें मिलाता है इस पर लाखोटिया ने संयंत्र के अंदर बैठे उन अधिकारियों कर्मचारियों को सेट किया जो स्लेग के साथ-साथ लोहा भी मकडम भिजवाते थे और लोहे की इस प्रतिस्पर्धा में लाखोटिया कटघरे में आ गया. सच्चाई तो यह है कि भिलाई इस्पात संयंत्र से स्लेग में लोहा निकालने वाले लाखोटिया अकेले नहीं है जब से संयंत्र बना और जब से मकडम यार्ड स्थापित हुआ तभी से जिसने भी मकडम का ठेका लिया उसने संयंत्र से लोहा निकाला. यही लड़ाई ठेकेदारों के बीच हमेशा चलती रही. क्ेेत्त् के आसपास निको कंपनी के मुकाबले कलकत्ता की एक कंपनी ने टेंडर भर दिया था जहां उसे भिलाई इस्पात संयंत्र से कचरा निकालने का ठेका मिल गया था और उसने भिलाई मकडम यार्ड से स्लेग निकालना शुरु किया था जिसका यार्ड सिम्पले स इंजीनियरिंग के बाजू में था बाद में इस कंपनी के साथ निको वालों का काफी झगड़ा हुआ. अंतत: यह कंपनी बीच में ही ठेका छोड़कर भाग गई और बाद में ठेका एमआर एसोसिएट्स को मिल गया. एक बार फिर भिलाई मकडम में कलकत्ता की कंपनी ने मकडम का ठेका ले लिया और एक साल के अंदर ही लाखोटिया ने भले ही संयंत्र में जमा किए करोड़ों रुपया के एवज में स्लेग निकाला हो या न निकाला हो लेकिन संसद के निवास में रिश्वत देते हुए जिस तरह से वह पकड़े गए उससे भिलाई के मकडम यार्ड में एक बार फिर लोहा गरमा गया है. भिलाई इस्पात संयंत्र इस कंपनी का ठेका निरस्त करती है या नहीं, यह कंपनी आगे काम करती है या नहीं अब इस पर भी सवाल उठने लगा है.
उधर संयंत्र प्रबंधन पर मकडम कांड की चिंगारी इस्पात भवन से लेकर ब्लास फर्निस और मकडम यार्ड के संबंधित अधिकारियों तक पहुंच गई है. देखना यह है कि भिलाई में चल रहा माफियाओं का यह खुला खेल संयंत्र अधिकारियों के हाथों कितने दिनों तक खेला जाएगा और कब तक संयंत्र इन माफियाओं के हाथों संयंत्र लुटता रहेगा और कब ऐसे अधिकारियों पर कार्रवाई होगी यह सेल प्रबंधन के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है.

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