Saturday, August 4, 2007

प्रदेश में नकली दवाओ का जाल - विक्रम जनबंधु



ड्रग इंस्पेक्‍टरों की संदिग्ध भूमिका


यह बड़े आश्चर्य का विषय है कि जहर के सौदागर प्रदेश भर के सवा दो करोड लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने पर तुले हुए हैं और प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग गहरी नींद में सोया हुआ है. नींद भी ऐसी कि कुंभकरण को भी मात दे दे. जिलों में दवा कारोबार ठीक ठाक चल रहा है कि नहीं, यह देखने की फुर्सत न स्वास्थ्य मंत्री के पास है न विभाग के आला अफसरों के पांस राज्य भर में ड्रग इंस्पेक्‍टरों की संख्या केवल सात है. एक-एक ड्रग इंस्‍पेक्‍टर चार-चार, पाँच-पाँच जिलों को अकेला ही संभाल रह है. एक जिले में उसका विजिट दो-तीन महीने बाद होता है. ऐसे में उन्हें यह देखने की फुर्सत कहाँ है कि इस कारोबार में कितनी सेंध है. यदि वह इस सेंध को पकड़ भी ले तो नोटों की थैलियां उनका मुँह बंद कर देती है. सूत्रों के अनुसार प्रत्येक दुकान से ड्रग इंस्‍पेक्‍टरको भ्०० रूपए का नजराना मिलता है. यदि प्रत्येक ड्रग इंस्‍पेक्‍टरकी संपत्ति की जाँच की जाए तो उनके पास अकू त संपत्ति मिल सकती है.

नकली दवाओ के सौदागर प्रदेश भर में जहर फै लाने में लगे हैं. कमोबेश हर जिले में नकली दवा का कारोबार फैल चुका है. प्रदेश की सवा दो करोड की आबादी नकली दवाओ की चपेट में आ चुकी है. नकली दवाओ के सौदागर प्रदेश के गाँव-गाँव में पहुंच चुके है. शहर के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में तो इनकी सक्रियता आश्चर्यजनक मुकान तक पहुंच चुकी है.

नवगठित छत्तीसगढ़ राज्य को एक पिछड़े प्रदेश के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है. इसमें राजनेताओ और नौकरशाहों का योगदान कुछ ज्यादा ही रहा है, जो राज्य गठन की शुरूआत से ही छत्तीसगढ़ को गरीब लोगों का पिछड़ा राज्य कहकर प्रचारित करने में लगे रहे. इसका लाभ अवैध कारोबार करने वाले सौदागरों ने भरपूर उठाया. उन्होंने प्रदेश को दोहन का चारागाह बना डाला और देश भर में फैले बड़े-बड़े अवैध कारोबार के सौदागरों ने छत्तीसगढ़ में अपने डेरे डाल लिए.आज छत्तीसगढ़ के गरीब और कथित रूप से पिछड़े लोगों के लिए छत्तीसगढ़ लूट का सबसे बड़ा केन्द्र बन चुका है.

राज्य भर में थोक में नकली दवाओ का कारोबार फैल चुका है. यह दवाईयां घटिया स्तर की होती है, जिन्हें ग्रामीण क्षेत्र के झोला छाप डा टरों को थमा दिया जाता है. इस तरह एक अच्छा खासा कमीशन मेडिकल स्टोर संचालक की झोली में चला जाता है और बदनामी झेलते हैं ग्रामीण डाक्‍टर.
इन दवाईयों और मेडिकल ट्रीटमेंट में अ सर चोट एवं घाव पर लगाने वाली दवाईयाँ, मेडिकेटेड पटि्ट याँ, दर्द निवारक गोलियाँ और ऐसी ही अन्य दवाईयां होती हैं. आम आदमी बिना जाँच पड़ताल के ऐसी दवाईयां दुकानदार से खरीद लेता है, इनमें ग्रामीण क्षेत्रों में पदस्थ शासकीय डाक्‍टर, आरएमपी डाक्‍टर और दुकानदारों के बीच सांठगांठ के संकेत भी मिले हैं.

मिली जानकारी के मुताबिक घटिया स्तर की दवाई को एक डाक्‍टर दिन में कम से कम दस मरीजों को पर्ची लिखकर खरीदने के लिए देता है. इस तरह एक महीने में उस डाक्‍टर को अच्छा खासा कमीशन संबंधित कंपनियों से मिल जाता है. घटिया कंपनियों की दवाओ में वास्तविक दवा का अंश बहुत कम या नहीं के बराबर होता है. इनकी लागत भी बहुत कम रहती है, लेकिन जब वह मेडिकल स्टोर्स से यह दवाएं बिकती हैं तो वह बड़ी कंपनी की दवाआंे के मूल्य पर ही बिकती हैं.

इस कारोबार में लिप्त लोगों को इससे काफी मुनाफा तो होता है, लेकिन दवा खरीदने वाले ग्राहकांे को इससे काफी शारीरिक नुकसान होता है. वे ठगे जाते हैं सो अलग. ग्रामीण क्षेत्रों के आरएमपी या झोला छाप डाक्‍टर, जिनकी दुकानदारी अच्छी चल रही होती है उन्हें घटिया दवाई बेचने वाले अपना मोहरा बनाकर नकली दवाईयां सप्लाई कर देते हैं. अमूमन नियम यह है कि कम से कम माह में एक बार ड्रग इंस्‍पेक्‍टरको दवा विक्रेताओ का स्टाक जरूर चेक करना चाहिए, लेकिन राज्य के प्रत्येक जिले में ड्रग इंस्‍पेक्‍टरकी नियुक्ति नहीं है. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि बस्तर संभाग में एक भी ड्रग इंस्‍पेक्‍टरनहीं है. इसलिए ऐसे जिलों में बिना लाईसंेस के भी कई दवा दुकानें खुल जाती हैं. अब इन दवा दुकानों मेें किस प्रकार की दवाई बिक रही है, यह कौन जाने. आमतौर पर पढ़ा लिखा आदमी भी दवाओ की वालिटी के बारे में अनजान होता है तो अनपढ़ ग्रामीणों की बिसात ही या है. दुर्ग जिले के थान खम्हरिया में पिछले दिनों क्भ् ऐसे युवकऱ्युवतियों को पुलिस ने गिरफतार किया था, जो अवैध रूप से है टाईटिस बी का टीका लगाकर ग्रामीणों से अवैध वसूली कर रहे थे. इन लोगों को ठीक से इंजे शन लगाना भी नहीं आता था. ऐसी भी जानकारी मिली है कि ज्यादातर उन दवाओ की नकल की जा रही है, जिनमें रोग निवारण के लिए नशीले पदार्थो का इस्तेमाल किया जाता है. इन नकली दवाओ में ज्यादातर वे कफ सिरप हैं, जिनमें कोकीन की मात्रा अधिक होने से उसके सेवन करने पर नशा होता है. चिकित्सा की दृष्टि से इन केमिकल्स की अच्छी डिमांड है, लेकिन दिन-ब-दिन इन दवाओ का नशे के रूप में प्रचलन बढ़ने से इनकी डिमांड पूरी करने नकली दवाईयां बनाई जा रही हैं. कप सिरप के अलावा कुछ दर्द निवारक गोलियोंं का इस्तेमाल भी नशे के लिए किया जा रहा है. अभी कुछ दिन पहले ही बस्तर से सटे सीमावर्ती राज्य उड़ीसा के बलांगीर जिले में करोडों रूपयों की नकली दवाओ को जब्त किया गया था. जिले के पुलिस अधीक्षक ने स्पष्ट कहा था कि दोषी पाए गए रसूखदार लोगों का सिंडीकेट छत्तीसगढ़ तक फैला हुआ है. प्रदेश में कई जिलों के जागरूक नागरिक भी अब नकली दवाओ के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने लगे हैं नकली दवाओ से इलाज करने वालों के लिए सजा-ए-मौत की माँग करते हुए लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट ्रीय अध्यक्ष रघु ठाकुर ने कहा है कि रायगढ़ में क्ख्त्त् बच्चों की मौत और कवर्धा में दर्जनों बैगाओ की मृत्यु ने यह साबित कर दिया है कि प्रदेश में नकली दवा का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है.

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