Saturday, August 11, 2007

मुख्‍य पृष्‍ट


रावघाट पर टिका है भिलाई संयंत्र का भविष्य

रायपुर. छत्तीसगढ़ आज इस्पात उत्पादन का सबसे बड़ा गढ़ बन गया है. भिलाई इस्पात संयंत्र एक तरफ जहां 40 लाख टन का उत्पादन दे रहा है वहीं निजी उद्योगों में भी इतना ही उत्पादन होने लगा है. आज प्रति दिन 3 लाख टन से अधिक का इस्पात राज्य से बाहर भेजा जा रहा है. इस्पात उत्पादन के अलावा स्पंज आयरन, पावर प्रोजेक्‍ट जैसे उद्योगों का आगमन हो रहा है वहीं टाटा, एस्सर, जिंदल जैसे उद्योग समूहों ने भी बड़े स्टील प्लांट लगाने की योजना बना ली है. उधर सेल ने भिलाई को 2010 तक 7 मिलियन टन का उत्पादन करने का ऐलान कर दिया है. इस तरह से आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ में 15 से 20 लाख टन का उत्पादन होने लगेगा जो एशिया ही नहीं सारी दुनिया में अपने आप में एक मिशाल होगा. इन सब के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता है तो माइंस और कोयले की जिसके बल पर आज इस्पात कारखाने स्थापित हो रहे हैं. भिलाई इस्पात संयंत्र पिछले 50 सालों से राजहरा माइंस के दम पर खरबों रुपए का इस्पात बना चुका है, लेकिन अब राजहरा खदान की अंतिम सासों ने भिलाई इस्पात संयंत्र ही नहीं बल्कि सेल के लिए भी प्रश्नचिह्न लगा दिया है. उधर, बस्तर क्षेत्र के नारायणपुर के पास हजारों एकड़ में फैली रावघाट की खदान आज भी विवादों में उलझी है जबकि इसकी खोज 1992 में भी प्रारंभ कर दी गई थी. तत्कालीन एमडी श्री ई.आर.सी. शेखर ने भिलाई में अपनी पहली पदस्थापना पर रावघाट की मांग की थी और यह कहा था कि आने वाले भविष्य में रावघाट भिलाई के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा. तब से लेकर आजतक चाहे श्री शंगमेश्वरन हो या सुब्रतरे या फिर ई.आर.सी. शेखर या विक्रांत गुजरात और बाद में आए बी.पी. सिंह और आरपी सिंह ने भी अपने कार्यकालों में रावघाट की दुहाई देते रहे. लेकिन कभी पर्यावरण तो कभी रेल्वे तो कभी सिंचाई तो कभी आदिवासी का मु ा हमेशा रावघाट के आड़े आया. आज भी दिल्ली में बैठे लोग रावघाट के लिए बड़ी-बड़ी बैठकों तो करते हैं लेकिन अभी तक रावघाट का काम शुरु हो इसकी नौबत नहीं आई है.

एनएमडीसी कंपनी पहले ही आयरन ओर के कारोबार में सक्रिय रही है आज भी आयरन ओर विदेशों में भेजा जा रहा है जबकि आज सबसे अधिक आवश्यकता छत्तीसगढ़ को हो रही है. केन्द्र सरकार ने एनएमडीसी को विदेशों में बेचने की अनुमति इसलिए दी थी कि उस वक्त छत्तीसगढ़ में आयरन ओर की खपत नहीं थी लेकिन आज छत्तीसगढ़ में जो आयरन ओर दिया जा रहा व ऊंट के मुंह में जीरे के समान है. यही कारण है कि बड़े-बड़े उद्योग पूंजीनिवेश करने में कतरा रहे हैं. रावघाट जैसी माइंस ऐसी पूरी तरह से सेल के हवाले हो जाती है तो निश्चित ही भिलाई इस्पात संयंत्र 7 से त्त् मिलियन टन का उत्पादन आसानी से कर सकेगा अन्यथा राजहरा माइंस की अंतिम सांसे संयंत्र के उत्पादन पर विराम लगा सकती है. पिछले दिनों सेल चेयरमेन और इस्पात मंत्री ने भी रावघाट की दुहाई देते हुए उसकी वकालत की थी और इसी के दम पर एमडी श्री रामाराजू ने अपनी पत्रवार्ता में यह घोषणा की थी कि 2010 तक संयंत्र 7 मिलियन टन का उत्पादन करने लगेगा लेकिन सवाल यह उठता है कि इस लक्ष्य को पाने के लिए 3 वर्ष शेष हैं जबकि न तो अभी रावघाट की रेल लाइन बिछी है और न ही बिछाने का काम प्रारंभ हुआ है ऐसी स्थिति में फिर रावघाट योजना उसी हाशिये पर चली गई है जो वर्षों से चली आ रही है.

निजी उद्योगों में घरेलु उपयोग उत्पादित हो रहा लोहा काफी आगे निकल गया है आज छत्तीसगढ़ में 20० से अधिक रोलिंग मिल क्०० से अधिक फर्निस और 20० के आसपास स्पंज आयरन स्थापित हो गए हैं या होने वाले हैं इस तरह छत्तीसगढ़ में इस्पात का उत्पादन जिस तेजी के साथ बढ़ रहा है वैसा कभी किसी ने सोंचा नहीं था यही कारण है कि आज छत्तीसगढ़ इस्पात उत्पादन का सबसे बड़ा गढ़ बन गया है. आज भी बड़े बड़े उद्योग समूह छत्तीसगढ़ में अपना उद्योग लगाने के लिए सबसे पहले आयरन ओर की तरफ झांकते हैं. पानी और बिजली की समस्या इतनी नहीं है जितनी आयरन ओर की है. जबकि छत्तीसगढ़ में कोयला, आयरन ओर, बिजली का पर्याप्त भंडार है. आज छत्तीसगढ़ से करोड़ों टन कोयला और आयरन ओर बाहर भेजा जा रहा है. छत्तीसगढ़ के सैकड़ों उद्योग रॉ मटेरियल की कमी को लेकर सरकार से गुहार लगा रहे हैं. वहीं सेल और रेल्वे के अधिकारियों के बीच रावघाट की हरी झंडी कब मिलेगी इस पर निगाहें टिकी हुई है.


एक नजऱ

राजेंद्र अरोरा का पार्षद पद निरस्त होगा?

भिलाई. जिला कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य समयलाल साहू ने कहा कि राजेंद्र अरोरा फर्जी पिछड़ा वर्ग जाति लोहार का प्रमाण पत्र बनाकर सन 20०० में नगर निगम भिलाई का चुनाव लडा था. छत्तीसगढ़ जाति उच्च स्तरीय छानबीन समिति ने ब् अगस्त को राजेंद्र अरोरा का जाति प्रमाण पत्र निरस्त कर जिलाधीश दुर्ग को तत्काल प्रमाण पत्र बनाने वाले एवं प्राप्तकर्ता दोनों पर कार्यवाही करने का आदेश जारी किया.
समय लाल साहू एवं रामा विश्वकर्मा ने जानकारी दी कि राजेंद्र अरोरा सन 20०० जुलाई में प्रथम नगर निगम चुनाव में फर्जी पिछड़े वर्ग जाति लोहार का प्रमाण पत्र राजनैतिक दबाव के माध्यम से बनाकर पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित वार्ड नं.22 से चुनाव लड़ा था, जबकि अरोरा जाति पिछड़े वर्ग में नहीं आता है.
राजेंद्र अरोरा का लड़का रणजीत सिंह अरोरा स्थानांतरण प्रमाण पत्र में अपनी जाति हिन्दू लिखा है जबकि इसके सगे भाई हरचरण सिंह अरोरा नगर पालिक निगम भिलाई में राजस्व निरीक्षक के पद पर कार्यरत हैं. अपनी जाति धर्म में सि ख लिखते हैं. इसी प्रकार स्वयं राजेंद्र सिंह अरोरा ने जब जाति प्रमाण पत्र बनाया उस वक्त अपने उपनाम अरोरा को छुपाकर केवल राजेंद्र सिंह पिता सुजान सिंह जाति लोहार बताते हुए अस्थायी प्रमाण पत्र बनवाया और पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित वार्ड नं.22 से चुनाव लड़ा.
म् महिने के बाद जब अस्थायी प्रमाण पत्र की अवधि समाप्त हो गई और सि ख समाज से वास्तविकता की जानकारी ली गयी तब सि ख समाज के ही लोगों ने जानकारी दी कि अरोरा उपनाम पिछड़ी जाति में आता ही नहीं. तत्काल फर्जी लोहार जाति के प्रमाण पत्र की जानकारी जिलाधीश, निर्वाचन अधिकारी रायपुर को दी गयी, लेकिन राजनैतिक दबाव के कारण कोई कार्यवाही नहीं हुई.ऐसी स्थिति में छत्तीसगढ़ शासन जाति प्रमाण पत्र उच्च स्तरीय छानबीन समिति आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के सचिव के पास शिकायत सन 20०3 में की गई. तीन सदस्य समिति वर्षों में छानबीन करने के पश्चात पाया कि राजेंद्र अरोरा पिछड़े वर्ग की जाति में नहीं आता है. राजेंद्र अरोरा के पूर्वज वास्वत में लोहार जाति के थे, यह साबित करने में अरोरा को समिति के समक्ष कई बार सुनवाई का अवसर देने के बाद भी कोई पूर्वजों के राजस्व का शैक्षाणिक अभिलेख में सबूत नहीं कर पाए.
माननीय उच्चतम न्यायालय के अनुसार फर्जी, गलत जाति प्रमाण पत्र धारक की नियुक्ति उनके नियोक्ता द्वारा निरस्त किया जाना है. अत: सचिव छत्तीसगढ़ शासन, नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग, मंत्रालय रायपुर को लेख किया गया है कि कु. माधुरी पटेल बनाम एडीशनल कमिशनल ट्रायबल डेव्हलपमेंट के प्रकरण में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा लिए गए, दिशा-निर्देश ए.आई. आर. 1995 एस.सी.95 की कंडिमका 1-(14 एवं 15) के अनुसार आवश्यक कार्यवाही करें.

खास खबर

इस राजनीति की लड़ाई में कौन कितने पानी में

ताराचंद साहू ने की राजनीतिक युद्ध की शुरूआत

दुर्ग. भिलाई इस्पात संयंत्र से मेटल की चोरी में सांसद का संरक्षण प्राप्त करने आए कलकत्ता, के ठेकेदार पवन लखोटियों को पाँच लाख रूपए की रिश्वत देते हुए एंटी करप्शन ब्यूरों द्वारा रंगे हाथ पकड़वाकर दुर्ग के सांसद ताराचंद साहू ने एक नई राजनीतिक लड़ाई का आगाज कर दिया है. यह लड़ाई विधान सभा में कांग्रेस विधायक दल के उपनेता भूपेश बघेल और भिलाई के विधायक तथा विधानसभा अध्यक्ष प्रेम प्रकाश पाण्डेय के खिलाफ है. इन दोनों नेताआें से श्री साहू का बहुत पुराना छत्तीसगढ़ आंकड़ा है.यह आंकड़ा राजनीतिक वजूद और कद काठी को लेकर भी है. राज्य में भाजपा की सरकार सत्तारूढ़ होने के बावजूद सांसद ताराचंद साहू दुर्ग में अलग-अलग पड़ गए थे.कभी प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रह चुके इस भाजपा नेता को जिले में अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़नी पड़ रही है.

विधानसभा अध्यक्ष प्रेम प्रकाश पाण्डेय से उनकी प्रति द्वंदिता किसी से छुपी हुई नहीं है. बहुत से ऐसे लोग हैं जो कभी प्रेम प्रकाश पाण्डेय के खासमखास हुआ करते थे, जो अब सांसद निवास में भटकते देखे जा सकते हैं. इसी तरह श्री साहू के खासमखास लोग आज पाण्डेय निवास में हाजरी बजाते हुए नजर आते हैं.मगडंप कांड के जरिए सांसद ने यह कहकर कि संयंत्र का यह इलाका पाटन के कांग्रेस विधायक भूपेश बघेल और भिलाई के विधायक प्रेम प्रकाश पाण्डेय के क्षेत्र में आता है, इसलिए वहाँ या हो रहा है, इसकी जानकारी उन्हें होनी चाहिए. रायपुर में गत म् अगस्त को ली गई पत्रवार्ता मंंे तो सांसद श्रीसाहू ने भूपेश पर काफी तीखे प्रहार किये और कहा कि दुर्ग में हुए धान घोटाले में यदि उनकी राईस मिल से एक रूपए की गड़बड़ी कोई साबित कर दे तो वे एक लाख रूपए का ईनाम देंगे. इस मामले में विधायक भूपेेेश बघेल के खिलाफ हाईकोर्ट में 20 लाख रूपए को मानहानि का दावा ठोकने की जानकारी भी उन्होंने दी. भूपेश पर वार करते हुए उन्होंने यहां तक कहा कि भूपेश स्वयं पाइप घोटाला कांडउ में फंसे है. पिछले दिनों जिलें में हुए धान घोटाला कांड में जिस तरह से उनके पुत्र दीपक साहू समेत उनके कुछ नजदीकियों पर पुलिस ने शिकंजा कसा, उस पर भी सांसद श्री साहू ने प्रेमप्रकाश पान्डेय पर अप्रत्यक्ष रूप से आरोप लगाए थे. श्री साहू पान्डेय पर इसलिए भी खफा हैं कि दुर्ग जिले में पदस्थ अधिकांश अधिकारी श्री पाण्डेय की पसंद और पहुँच के कारण ही पदस्थ हैं. चूंकि उनकी पदस्थापना में श्री पाण्डेय की कथित दिलचस्पी रही है, इसलिए वे श्री साहू को तवज्जों नहीं देते या कम करके आंकते हैं. श्री साहू चूंकि जिले से लगातार तीन बार सांसद चुनाव जीत चुके हैं इसलिए साहू समाज और अन्य छत्तीसगढ़ समाज के लोगों में उनकी खासी पकड़ है. वे एक बार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुकेे हैं.सांसद निधि से भी उन्होंने छत्तीसगढ़ और गैर छत्तीसगठिया समाज के लिए काफी काम किया है. केेंद्र तक पार्टी के वरिष्ठ नेताआें से सीधा संपर्क होने के बावजूद वे केंद्र मेंं मंत्री नहीं बन पाए, इससे उनके राजनीतिक कद को कहीं न कहीं धक्का लगा है. अलबत्ता बतौर एक सांसद वे प्रदेश की राजनीतिक फिजां में पतझड़ के ही ज्यादा करीब रहे हैं. रायपुर के सांसद रमेश बैस के साथ भी उनका लाल झंडा है. एक मात्र लखीराम अग्रवाल को छोडकर अन्य भाजपा नेताओं से उनकी नजदीकियां कभी उजागर नहीं हुई. इसलिए उनके अच्छे बुरे वक्त में उनके कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले लोग कभी सामने दिखाई नहीं दिए. कमोवेश एकला चलो की राजनीति करने वाले सांसद तारांचद साहू ने जिस राजनीतिक युद्घ की शुरूआत की है, उस चक्रव्यूह को वह अकेले बेध पाएंगा, जनता के लिए यह देखना बेहद दिलचस्प होगा.



क्‍या ईमानदारी का सर्टिफिकेट मिल गया सांसद को?

आईना-ए-शहर

अब्दुल मजीद

सांसद ताराचंद साहू को रिश्वत देने की कोशिश कर रहे उद्योगपति पवन लाखोटिया की गिरफतारी के बाद खुद ताराचंद साहू पत्रकार वार्ताएं लेकर यह ढिंढोरा पीटने में लगे हैं कि वे पहले भी भ्रष्‍टाचार के खिलाफ लड़ते रहे हैं और आगे भी लड़ते रहेंेगे. जगह-जगह उनका स्वागत हो रहा है और उनकी ईमानदारी के पक्ष में कशिदे गढ़ने वालों की लाईन लग गई है. शायद श्री साहू को भी इसका भान नहीं होगा कि उनका सम्मान करने वाले लोगों का तांता लग जाएगा. यहाँ तक कि भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा भी उनका सम्मान किया गया.

ईमानदारी की कद्र होना अच्छी बात है. लेकिन उसे सुनियोजित करना दूसरी बात. आज मार्केटिंग का युग है. जिस व्यक्ति को मार्केटिंग करना आ गई, वही सफल है. मार्केटिंग भी कई तरह की होती है. लोग अपने कामों को कैश भी कर लेेते हैं.आज अपने कार्यों को कैश कर लेना भी एक कला है. ईमानदारी का जितना भी प्रचार होगा, उतना ही अच्छा है. आजकल ईमानदार आदमी मिलते ही कहाँ है. समाज में यह कहावत बड़ी चरितार्थ है कि बेईमान आदमी ढूँढता है.भले ही वास्तविक ईमानदार आदमी भूखें मरता हो. मगर अपने आपको तो ईमानदार व्यक्ति घोषित करवाना तो और भी बड़ी बात है.

सांसद की इस ईमानदारी के साथ कुछ और बातें जुड गई हैं. कहा जा रहा हैं कि भिलाई की एक बड़ी कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए उन्होंने पाँच लाख रूपए ठुकरा दिए. एक पाँच लाख गए तो या? श्री ताराचंद साहू सांसद है, बड़े आदमी हैं, उनकी छवि ईमानदार व्यक्ति की होनी ही चाहिए. पर या उनके इस एक कदम से उन्हें ईमानदारी का सर्टिफिकेट मिल गया? अब बड़े लोगों की बातें तो बड़े लोग ही जाने.



अपराधियों की शरणस्थली भिलाई

भिलाई अब बड़े अपराधियों की शरणस्थली भी बनती जा रही है. अभी तक जितने भी अपराधी पकड़े गए हैं, ज्यादातर ऊनशिप क्षेत्र से. कारण, वहाँ नगर प्रशासन भवन में बैठे भ्रष्ट अधिकारियों के कारण बीएसपी के मकान टाऊनशिप क्षेत्र में आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं. भ्रष्‍टाचारी यह नहीं देखते कि जिसे अवैध कब्जा करवाया जा रहा है, वह कौन है? उन्हें तो अपने कमीशन से मतलब रहता है.

पिछले दिनों बीएसपी के नगर प्रशासन विभाग ने बड़े जोर-जोर से अवैध कब्जों से मकान खाली कराने का अभियान चलाया गया था. अधिकारियों ने बड़े-बड़े दावे किए थे कि अब किसी को बख्शा नहीं जाएगा. लेकिन यह अभियान टांय-टंाय फि स हो गया. आखिर भ्रष्टाचार में डूबे अधिकारी कब तक अपने कमीशन पर डाका डलते हुए देखते रहते. इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि मकान दिलाने वाले दलाल आज या ईमानदारी का सर्टिफिकेट मिल गया सांसद को?

भी उतनी ही सक्रियता से डटे हुए है, जितनी सक्रियता से वह पहले डटे हुए थे. बीएसपी के अवैध कब्जा खाली कराओ अभियान का उनपर जरा भी असर नहीं है. दरअसल कब्जा तो खाली करा लिया जाता है, पर कब्जा कौन कराता है, ऐसे एक भी व्यक्ति पर थाने में अपराध दर्ज नहीं किया जाता, जबकि अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक संजीव शु ला के नेतृत्व में बीएसपी अधिकारियों और सीआईएसएफ अधिकारियों की दो संयुक्त बैठकें हो चुकी हैं, जिसमें अवैध कब्जाधारियों पर कठोर कार्रवाई करने के साथ-साथ यह भी पता चलाने की बात कही गई थीं कि से टर क्षेत्र में कोई अपराधी तो नहीं छुपा है, इसकी भी जाँच की जाएगी. पर इस दिशा कोई प्रगति नहीं हुई है.




छत्तीसगढ़ ट्रेलर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन का दो माह के अंदर नया चुनाव : अरोरा



भिलाई. भिलाई ट्रक ट्रेलर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के कार्यकारी अध्यक्ष श्री गोपी अरोरा ने एक पत्रवार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ स्तरीय चल रही ट्रेलर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन अब और मजबूती की ओर जाएगी और इसका चुनाव ख् महीने के अंदर विधिवत रुप से आम सम्मेलन के तहत किया जाएगा.

गोपी अरोरा ने कहा कि इस यूनियन के पूर्व अध्यक्ष मंगा सिंह के खिलाफ अवैधानिक कार्यों को लेकर यूनियन में असंतोष उभर गया था जिसके कारण ब् अगस्त को काफी हाउस में एक विशाल बैठक लेकर सभी सदस्यों ने मंगा सिंह को पद मुक्त कर मुझे कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया था जिसकी सूचना रजिस्टार को दे दी गई थी. आगे की कार्यवाही की जा रही है. गोपी अरोरा ने कहा कि ट्रेलर ट्रांसपोर्टर एसोसिएशन हमेशा आपरेटरों और ट्रांसपोटरों के हित के लिए बनाई गई थी किन्तु अंडर लोड के बहाने एक दूसरों की गाड़ियां पकड़ाना, एक-दूसरे की शिकायत करना यह संस्था के लिए अहितकारी हो गया था और अनेकों बार अध्यक्ष मंगा सिंह को समझाने के बाद वह नहीं मान रहे थे जिसकी वजह से ऐसा किया गया. श्री अरोरा ने कहा कि संस्था के फंड की अभी पूरी जानकारी नहीं मिली है जबकि संस्था के फंड को बैंक में जमा करना था किंतु बैंक में राशि जमा नहीं है इसके बारे में संस्था के अन्य सदस्य कोषाध्यक्ष से इस बारे में जानकारी लेंगे और वे पैसा किसके पास है उसकी व्यवस्था करेंगे.

हाइवे केंटीन में आयोजित पत्रवार्ता में एसोसिएशन के कई वरिष्ठ नेता मौजूद थे जिसमें वीरा सिंह ने कहा कि यूनियन के अंदर रहकर यूनियन के हित की बात करनी चाहिए लेकिन जो भी यूनियन का अहित करेगा उसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. छोटा हो या बड़ा सभी ट्रांसपोर्टर इस संस्था का सदस्य है और उसके साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए. पत्रवार्ता में उपस्थित अशोक जैन ने भी अपने विचार रखते हुए कहा कि यूनियन को सुचारु रुप से चलाने के लिए एकजुट होकर अच्छी कमेटी का गठन किया जाए जो राज्य स्तरीय होकर एसोसिएशन का भला कर सके. कोई भी भेदभाव या छोटे-बड़े का अंतर नहीं होना चाहिए, साथ में ही उपस्थित ट्रासपोर्टर दिनेश सिंह ने कहा कि पिछले कई महीनों से संस्था के पूर्व अध्यक्ष मंगा सिंह ट्रांसपर्टरों को कार्ड बेच रहे थे जो गलत था. आर.टी.ओ. के साथ ओवर लोड गाड़ियों को पकड़ा रहे थे इससे ट्रांसपोर्टरों को भारी नुकसान हो रहा था और इसी को लेकर आपरेटरों में तनाव पैदा हो गया था जिसके कारण मजबूर होकर मंगा सिंह को हटाया गया और गोपी अरोरा को कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया.

पत्रवार्ता में उपस्थित लगभग 50 आपरेटरों की मौजूदगी में कई आपरेटरों ने यूनियन की मजबूती के लिए अपने-अपने सुझाव और चुनाव के लिए निष्पक्षता पर जोर दिया. संस्था के पहले अध्यक्ष प्रभुनाथ पैठा ने भी अपने विचार रखते हुए कहा कि यूनियन की एकजुटता बहुत जरूरी है आज महंगाई के जमाने में गाड़ियों का चलाना उसका खर्च निकालना मुश्किल हो गया है. छोटे आपरेटरों को सबसे ज्यादा परेशानियां हो रही है ऐसी स्थिति में अच्छी कमेटी चुनी जाए जो इस संस्था को सही ढंग से चलाए और सभी आपरेटरों को इसका लाभ मिले. जातिवाद भेदभाव छोटे-बड़े का मापदंड नहीं होना चाहिए तभी यह यूनियन मजबूती के साथ चल सकेगी. अंत में वीरा सिंह ने कहा कि दो महीने के अंदर इसका चुनाव करा दिया जाएगा. सारी कमियां दूर कर ली जाएगीं.



बिजली विभाग की डकैती

पिछले दिनों वैशाली नगर के रहवासियों ने बिजली विभाग की अर्थी निकाल कर अंट-शंट बिल आने के खिलाफ प्रदर्शन किया. भारी भरकम बिल के विरोध में जमकर नोरबाजी कर शव का अंतिम संस्कार भी किया गया. नागरिक इस बात का विरोध कर रहे थे कि जुलाई माह का बिजली बिल निरस्त किया जाए. दरअसल बिजली विभाग पिछले कुछ सालों से खुलेआम दादागिरी करके मनमानी पर उतर आया है. वह मनमाने ढंग से 40-40 हजार रूपए का बिल रहवासी क्षेत्र में भेज रहा है. वैशाली नगर क्षेत्र में जुलाई माह में कमोबेश सात हजार रूपए से कम किसी का बिल नहीं आया है. किसी का 10 हजार, किसी का 14 हजार तो किसी का 36 हजार, का बिल आया है. इतना भारी भरकम बिल देखकर तो उपभोक्ताओं के होश ही उड़ गए.यह जनता के संगठित होने का बेमिसाल उदाहरण है. जब तक जनता संगठित नहीं होगी, तब तक समस्या का समाधान होना भी कठिन है. बिजली विभाग के अधिकारियों के मन मे यह बात बैठ गईर् है कि जिस प्रकार वे प्रतिमाह हजारों, लाखों की हराम की कमाई वसूल करते हैं उसी प्रकार आम उपभोक्ता भी अपनी जेब में हजारों रूपए लेकर चलते हैं. जैसे ही बिजली बिल पहुँचेगा, वे अपनी जेब से पैसे निकालकर चुुपचाप जमा कर देंगे. जो लोग अधिक बिल आने का विरोध करते हैं, उनसे कह दिया जाता है कि ये बिल तो आप जमा करवा दीजिए. अगले बिल में कटौती कर देगे. इस तरह बिजली विभाग लोगो की जेब पर सरेआम डाका डालने पर तुला हुआ है. अत: वैशाली नगर के रहवासियों ने जिस तरह बिजली बिल का विरोध किया है, वह अनुकरणीय उदाहरण है.

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