Tuesday, July 31, 2007

मंदिरों की नहीं, शौचालयों की जरुरत

प्रदेश में यह अच्छी खबर आई है कि राज्य के सभी स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्र में शौचालय होगा. यह घोषणा की है लोक निर्माण यांत्रिकी राज्यमंत्री केदार कश्यप ने. यह बात उन्होंने संपूर्ण स्वच्छता अभियान पर रायपुर में ख्फ् जुलाई को आयोजित छह दिवसीय राज्य स्तरीय कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर कही. उन्होंने यह भी कहा कि ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों के सहयोग से एक साल के भीतर प्रदेश के सभी विकासखंडों के हर गांव और प्रदेश के सभी स्कूलों और आंगनबाड़ी को शौचालययुक्त बनाना है. बनाना ही नहीं बल्कि उनका शत-प्रतिशत उपयोग भी कराना है. यह सरकार की अच्छी सुध है. देर से ही सही, पर वह चेती तो सही, आज से क्भ् साल पहले सुप्रसिद्ध लेखक और पत्रकार स्वर्गीय कमलेश्वर ने कहा था कि देश में जिस संख्या में मंदिर हैं, उस अनुपात में शौचालय नहीं है. इससे लोगों को अत्याधिक शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है. दरअसरल वे मार्के की बात कह गए. शहरों की मलीन बस्तियों और रेल पटरियों के किनारे से लेकर गांव के मे़ढों तक लोगों को अपनी आबरू उधे़डकर शौच से निवृत्त होने के लिए मजबूर होना पड़ता है. खासकर महिलाआें और बच्चियों को अपने पेट में उठते मरोड़ के बावजूद किसी राहगीर के लिए पेट पकड़कर खड़े होने को विवश होना पड़ता है. यह विडंबना नहीं तो और या है कि उसी गांव बस्ती के हर दूसरे मोड पर किसी न किसी भगवान का मंदिर तो बना मिल जाएगा, लेकिन शौच से निवृत्त होने के लिए लोगों को गांव बस्ती से दूर कोई कोना तलाशना पड़ता है. यह शिक्षा, जागरूकता का ही अभाव है कि लोग सड़क किनारे भगवान को पाने का अंधविश्वास पाल लेते हैं, लेकिन अपनी बहू बेटियों की इज्जत बचाने के लिए शौचालय को महत्व नहीं देते. मंदिर तो गांव बस्ती में केवल एक ही काफी हैं, जबकि शौचालय की जरुरत घर घर में है. जाने कब लोगों को यह अकल आएगी. भला हो उस प्रभु का, जिसने सरकार के इस मंत्री को तो यह अकल दी.

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