Tuesday, July 31, 2007

हम भी किसी से कम नहीं

भिलाई. उच्च तापमान, और भारी भरकम मशीनों के बीच लौह एंव इस्पात उत्पादन के जटिल और जोखिम भरे काम के बीच किसी महिला कर्मी के कार्य करने की कल्पना ही उस महिला के साहस और कठोर व्यक्तियों को स्पष्ट कर देता है. भिलाई इस्पात संयंत्र के ब्लास्ट फर्नेस जिसे किसी भी एकीकृत इस्पात संयंत्र का हदय कहा जाता है में भी महिला कर्मी पूरे लगन और साहस के साथ वर्षों से कार्य कर रही है. अब तो वे इसे छाे़ड कर कहीं और नहीं जाना चाहती है. इनका कहना है कि ये अब हमे अपने घर जैसा ही लगा है.चार पुत्रियों और एक पुत्र की माता श्रीमती संगीता सिंहा ब्लास्ट फर्नेस मंे क्ेेफ् से कार्यरत है. इनका पति की क्ेत्त्त्त् में निधन होने पर इन्हें कंम्पनशेन आधार पर संयंत्र में नौकरी मिली थी और प्रारंभ से ही ये ब्लास्ट फर्नेस में पदस्थ है. शुरू-शुरू में ब्लास्ट फर्नेस से डर लगता था किंतु अब तो अच्छा लगता है. इनका कहना है कि जरूरत के समय यहां के लोगां ने ही मुझे सहारा दिया और कभी भी कोई पेरशानी नहीं आई. मेरे साथ पूरा सहयोग बना रहा है. आज तक किसी भी विपरीत परिस्थिति का सामना नहीं करना पड़ा अपने घर जैसा ही लगता है.इनके साथ ही श्रीमती बी पद्मा है. इनके पति भी ब्लास्ट फर्नेस में कार्य करते थे और क्ेत्त्स्त्र में इनके निधन के बाद इन्हें नियुक्ति मिली. श्रीमती पद्मा कहना है कि ख्० वर्ष हो गये है मुझे ब्लास्ट फर्नेस मंे काम करते हुए आज तक कोई भी परेशानी नहीं आई है. पुरानी बातों को स्मरण कर भर अये गले से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि मैं ब्लास्ट फर्नेस कोक कभी नहीं भूल पाउंगी. जब मेरे पति का निधन हुआ मेंरे बच्चे छोटे थे तब ब्लास्ट फर्नेस के लोगों ने मुण्े और मेरे बच्चों को परिवार वालों की तरह सहारा दिया है. यहां हमे कभी किसी प्रकार का भय नहीं लगा और न ही कोई तकलीफ हुई है. अब यहां की अच्छा लगता है. रिटायर होने तक यही रहना चाहती हूँ.दिन भर डाक लेकर इधर से उधर जाने और जरूर पडने पर ब्लास्ट फर्नेस के प्रचालन क्षेत्र में भी जाना पडता है श्रीमती शांति बाईर् को. पांच वर्ष पहले संयंत्र की दल्ली राजहरा खदान से ट्रांसफर पर आई है. कहती है कि शुरू-शुरू में थाे़डा- थाे़डा डर लगता था. अब तो घर जैसा लगता है. नौकरी के कुछ साल बाकी है शरीर साथ देगा तो बाकी समय भी यही गुजारना चाहती है शांति बाई. नारी किसी से भी कम नहीं है कि कहावत को यहां साफ महसूस किया जा सकता है. ये चारों महिलाए प्रत्यक्ष रूप से प्रचालन क्षेत्र से नहीं जु़डी है लेकिन ब्लास्ट फर्नेस क्षेत्र में कार्य करने का इनका रोचक अनुभव इन्हें एक सशक्त व्यक्तित्व का मालिक बनाता है. पुरूषों के साथ बराबरी से मिलकर काम करना और संयंत्र की बेहतरी में योगदान अब इनकी फितरत सी हो गई. कहा जाता है कि लौह एवं इस्पात का उत्पादन करना बच्चों का खेल नहीं है.

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