Tuesday, July 31, 2007

सारी अपेक्षाएं स्कूली शिक्षा से ही यों?

चतुरानन ओझा

एनसीईआरटी ने यौन शिक्षा नाम से एक कार्यक्रम तैयार किया है. इसके लिए उसे यूएनओ सहित वैश्विक संस्थाआें का सहयोग प्राप्त है. इस विषय पर तमाम सरकारी गैरसरकारी स्तर पर प्रचार-प्रसार होता रहा है. शील-संकोच एवं लज्जा जैसे समाज के विकासक्रम में हजारों वर्षों के दौरान निर्मित मनोभावों को एवं समाज को नियंत्रित एवं अनुशासित करने में उसकी सकारात्मक भूमिका को खारिज करते हुए बेलगाम भोग-संभोग करते रहने के सुरक्षित उपाय बताए जाते हैं. इन सबसे शासक वर्ग के नियताआें का मन नहीं भरा. इन सभी स्वेच्छाचारी गतिविधियों पर मुहर लगाने के लिए इसे शिक्षा व्यवस्था के माध्यम से किशोर वय के बीच ले जाना आवश्यक है. आज शिक्षा एवं समाज के नियामक कहलाने वाले लोग यही कर रहे हैं यौन शिक्षा के नाम पर. वस्तुत: शिक्षा के व्यवसायीकरण व्यवसायिक शिक्षा और कुल मिलाकर शिक्षण संस्थाआें का निजीकरण करके उन्हें भारी मुनाफा कमाने वाले उपक्रमों के रूप में बदले जाने से इस क्षेत्र में एक डरावना माहौल पैदा हुआ है. इसमें एक तरफ मध्यवर्गीय व्यक्तिवादी महत्वकांक्षाआें को चरम पर पहुंचाया है. वहीं शिक्षा व्यवस्था से ढेरों ऐसी अपेक्षाएं भी जगा दी है जिसे पूरा करना उसका काम नहीं है. इसमें प्रमुख है रोजगार परक शिक्षा विशेषज्ञ भी जानते हैं कि रोजगार देना अर्थव्यवस्था का काम है न कि शिक्षा का. किंतु इसे प्रचारित कर शिक्षा का व्यवसाय तेजी पर है.

No comments: