Tuesday, July 31, 2007

भाजपा, कारवां गुजरा लेकिन गुबार बाकी

ध्रुवनारायण अग्रवाल

किसी भी राजनीतिक दल में विशेषकर जब वह सत्ता में हो तब पार्टी नेताआें मे से कुछ के विरोध, असंतोष और मतभेद कोई नई बात नहीं होती जब तक कि विरोध विद्रोह का रूप् धारण न कर ले.पार्टी प्रमुख या मुख्यमंत्री उसकी, उन लोगों की परवाह भी नहीं करते डा. रमन सिंह भी अपने कुछ असंतुष्ट विधायकों की उछल-कूद से बेफिक्र हैं ननकीराम को मंत्रीमंडल से हटाए जाने या अमर की घर वापसी से उठे इस विवाद को वे फिलहाल प्याली में तुफान से अधिक महत्व नहीं दे रहे हैं और कह रहे हैं कि गार्जियन से अपनी बात कहने में या हर्ज है. इन असंतुष्ट ों को और भी तरीके से संतुष्ट करने के लिये भाजपाा शासन और संगठन में अभी भी बहुत सी कुर्सिया खाली है.

नवगठित छत्तीसगढ़ राज्य में विशुध्द भाजपा सरकार के नं. वन तमगा प्राप्त मीडिया के सर्वेक्षण के अनुसार मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के खिलाफ उनकी ही पार्टी में विरोध के स्पर बार-बार उभर रहे हैं. इस बार भी श्री ननकी राम कंवर को मंत्री पद से अलग करके उन्होंने अपने ही घर में कलह पैदा कर दी है. रमन सरकार की कार्यप्रणाली से स्पष्ट सिर्फ म् ही विधायक दिल्ली पहुंच सके, तैयारी तो ख्ख् को ले जाने की थी और जिन्होंने पार्टी अनुशासन के दायरे में रहते हुए तीर्थ यात्रा कर बहाना बनाकर रमन सिंह की शिकायत पार्टी आला कमान से कर आये. राजनीति के पंडितों काा यह कथन कि यदि सिर्फ क्त्त् भाजपाई विधायक फूट गये तो रमन जी की कुर्सी गई, यह तो अभी संभव प्रतीत नहीं होता योंकि अन्य संतुष्ट ों को पार्टी हाईकमान के इस मामले में ठंडे व्यवहार से निराश ही होना पड़ा है किंतु उनके लिये कोई अनपेक्षित नहीं था, वास्तव मं वे दिल्ली में आगाज करना चाहते थे.अंबिकापुर बैठक में भी असंतुष्ट ों को सिर्फ अनुशासन का पाठ पढ़ाया गया. अंबिकापुर बैठक में असंतुष्ट ों का गुबार शांत नहीं हुआ है. भाजपाई विरोध का कारवाँ तो फिलहाल गुजर समझा जाना चाहिये परंतु धूल गुबार तो अगले आम चुनाव तक उड़ती ही रहेगी. यद्यपि सुलह-सफाई और मान- मनौव्वल का दौर भी चलता रहेगा इसके लिये पार्टी हाईकमान ने सौदान सिंह और छत्तीसगढ़ पार्टी कर रखा है फिर भी या यह अंतर्कलह शांत हो सकेगा. आज यदि जोगील फामूला काम आता जिसमें दलबदल की गुंजाइश हो तो या इन सात असंतुष्ट विधायकों को पार्टी अध्यक्षकी घु़डकी सहनी पड़ती और या आडवाणी जी तथा अटलजी इनसे मुलाकात करने में इंकार कर सकते थे.

अब हम आते हैं उन अरोपांे पर जो उनके ही इन कमजोर दिल वाले विधायकों ने लगाये हैं कमजोर दिल वाले इसलिये कि इन्हांेने अपना शक्ति प्रदर्शन नहीं किया शायद टिकिट कट जाने का भय है.आदिवासी कार्ड ख्ेाला जा चुका है. रमन जी अपनी पत्ता खोल नहीं रहे हंै परंतु खलबलाहट तो है ही जिसकी आज प्रतिपक्षी काँग्रेसियो तक पहुंच रही है. शासन और संगठन के बीच तालमेल बनाये रखने के आदर्श वा य पुराने पड़ गये है. जो खबरे छनकर बाहर आयी है. उनके अनुसार तो रमन जी भी अपनी घर सम्हालने भाईयों, को समेटे रखने और पुत्रों को समझाइश देने में लग गये हैं. समाचार है कि अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि असंतुष्ट विधायकों के आरोपों की सत्यता एवं प्रमाणिकता की जाँच करके एक रिपोर्ट तैयार की जाये. यह एक जवाब होगा, स्पष्ट ीकरण होगा, जिसे लेकर रमनजी दिल्ली उड़ जायेंगे और राजनाथ सिंह के समक्ष रखकर उनका फिर से एक बार आशीवार्द प्राप्त करते. समाचारों के अनुसार असंतुष्ट ों ने कोई ठोस आरोप प्रस्तुत नहीं किये, सिर्फ इतना ही कहा कि सरकार अफसरशाही की गोद में चल गई है. कुछ अधिकारी उनकी कुछ सुनते हैं कुछ नहीं. सांसद रमेश बैश जो अपने को इस झगड़े से दूर ही रख रहे हैं, सिर्फ इतना कहकर अपना पल्ला झाड़ लिये कि जब कोई कुछ सुनता ही नहीं तब या किया जाये. उनकी यह टिप्पणी असंतुष्ट ों को हतोत्साहित करने वाली तो नहीं अपितु की पुटि करने वाली है.

ननकीराम के तेवर अवश्य उग्र हैं, उन्होंने पुन: मंत्रिमंडल मेें प्रवेश का आफर ठुकरा दिया है जो स्वयं राजनाथ सिंह ने उन्हंंे संतुष्ट करने के लिये दिया.आदिवासी सासंद और विधायक, लालमबंद हो रहे हैं यही मौका है कि राज्य में कांग्रेेस पार्टी, जो दमदार नेतृत्व के अभाव से जूझ रही है, मौके का फायदा उठा सकती है. कांग्रेेस में जोगी गुट, मोतीलाल वेाा का गुट खेमेबाजी में लिप्त है. जब अने ही घर के अंागन में दीवार खड़ी हो तो अगला विधानसभा आम चुनाव जीतने के लिये कांग्रेस को यह दीवार गिरानी ही पड़ेगी. अन्यथा, खैरागढ़ मालखरौदा चुनाव परिणाम की पुनरावृत्ति भी हो सकती है. भाजपा की भी सारी कसरत अगले चुनाव के लिये हो रही है. इस चुनावी दंगल में बाजी मारने के लिये यही उपयुक्त समय है.ांग्रेस के लिये सबक यही है कि किस इन दि टूबल वाटर जब दुश्मन मुसीबत में हो तभी वार करो. राजनीति और विशेषकर प्रजातंत्र में राजनीति का चुनावी गणित यही कहता है कि मतदाता परिवर्तन चाहता है. हमारा भी यही अनुभव रहा है कि सता बदली है, जिस पार्टी की भी सरकार रही हो उसे अगले चुनाव मे रिजे ट किया गया है. उसकी विकास योजनायें कोई काम नहीं आती. अब वो जमाना लद गया जब कांग्रेस ने ब्० वर्षों तक सारे देश में निर्द्वंद्व और बेखौफ शासन किया योंकि जनता के समक्ष कोई और विकल्प भी नहीं था. आज के राजनीतिक दल जो स्वाधीनता काल की उपज है, धाकड़ कांग्रेसियों के मुकाबले बौने पड़ रहे थे, आज स्थिति विपरीत है.किसी भी एक दल में कांग्रेस की तरह राष्ट ्रीय प्रभाव नहीं है इसीलिये जाे़डताे़ड की सरकार बन रही है और गठबंधन चल भी रही है. लोहिया जी ने जिस राष्ट्रीय सराकर की कल्पना क्ेस्त्र० में की थी वह आज सराकर हो रही है. वैसे भी अटलजी की यह युक्ति याद आती है कि रोटी को जितनी बार पलटोगी उतनी ही अच्छी सिंकेंगी. वही अब हो रहा है. आज छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार चाहे गाय बैल बांटे चरणापादुका से आविवासियों का पूजन कर ले.नाई पेटी भी वितरित कर ले और अमृत नमक चखा दे,तो मतदाता पर कोई असर नहीं पड़ेगी. परंतु इस प्रचलित सिध्दांत के कुद अपवाद भी होते हैं, जो पश्चिम बंगाल में दिख पड़ता है, केरल, मणिपुर में भी एक लंबे समय से सत्ता परिवर्तन नहीं हुआ पश्चिम मंे तो ज्योति बसु नेहरूजी सिध्द हुए जो लगातार पच्चीस वर्षों से साम्यवादी सरकार को कायम रख सके. और आज भी वहां साम्यवादी सरकार ही चल रही है. इसका कारण तो हमें सिर्फ यह लगता है कि राजनीतिक विचारधारा की टकराहट से मतदाता अनभिज्ञ रहता है. इसके अलावे सत्ता में बना रहने के लिये शासन को कुछ बुनियादी सुधार करना पड़ता है बंगाल में ज्योति बसु की ग ी कायम रहने का राज यही बताया जाता है कि उन्होंने भूमि सुधार के लिये बहुत काम किया. छत्तीसगढ़ में रमन जी की सरकार के लोक लुभावने काम सामने आना चाहिये. आदिवासी और अनुसूचित जाति की कन्याआें को मुफत साइकिल बांटकर वे बस्तर और सरगुजा के मतदाताआें को जिनके नेता अभी सर्वाधिक असंतुष्ट है और यह कह रहे हैं कि यह आदिवासी विरोधी सरकार है, जबकि आदिवासियों की ताकत पर ही यह पार्टी शासन में आयी है, कितना रिझा सकते है यह समय ही बतायेगा.

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