Tuesday, July 31, 2007

छत्तीसगढ़: जहां देवता कभी नहीं सोते

भारत भूखंड में छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जहां की मूल संस्कृति में श्रवण से लेकर कार्तिक मास तक के चातुर्मास में देवताआें के सो जाने अथवा इन चार महीनों में शादी विवाह जैसे कोई भी मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए वाली बात लागू नहीं होती. यहां के मूल निवासियों के द्वारा कार्तिक अमावस्था को गौरा पूजा के रूप में मनाए जाने वाला भगवान शंकर तथा देवी पार्वती का विवाह पर्व इस बात का अकाटय प्रमाण है.कार्तिक शु ल एकादशी को मनाया जाने वाला पर्व देवउठनी से उस दिन पहले कार्तिक अमावस्था को यहां गौरी पूजा का जो पूर्व मनाया जाता है. वह वास्तव में भगवान शंकर जिसे यहां ईसर देव,बू़ढा देव भी कहा जाता है, के साथ देवी पार्वती के विवाह के पर्व हैं. शंकर-पार्वती के विवाह पर्व को यहां प्रचलित विवाह के पारंपरिक रिति-रिवजों के साथ मनाया जाता है. तब प्रश्न यह उठता है कि या शंकर-पार्वती के विवाह में अन्य देवगण शामिल नहीं हुए थे? और यदि हुए थे तो फिर उनके सो जाने वाली बात कहंा तक सही है? अथवा देवउठनी के पूर्व कोई भी मांगलिक कार्य नहीं करने की बात को यहां के संदर्भ में कैसे स्वीकार किया जा सकता है. छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति मंे पर्वों की दृष्टि से देखें तो श्रावण से लेकर कार्तिक तक का यह चार महीना ही सबसे महत्वपूर्ण महीना होता है, योंकि इन्ही चार महीनों में यहां मनाए जाने वाले सभी प्रमुख पर्वों का आगमन होता है. उदाहरण के लिए देखें- श्रावण मास में अमावस्या तिथि को हरेली पर्व, शु ल पक्ष पंचमी को नागपंचमी तथा पूर्णिमा को शिवलिंग प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है. भादांे मास में कृष्ण पक्ष यह षष्ठ ी को स्वामी कार्तिकेय का जन्मोत्सव पर्व कमर छठ के रूप में, अमावस्या तिथि को नंदीश्वर का जन्मोत्सव पोला पर्व के रूप में, शु ल पक्ष तृतीया को देवी पार्वती द्वारा भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए किए गए कठोर तप के प्रतीक स्वरूप मनाया जाने वाला पर्व तीजा तथा चतुर्थी को विघ्नहर्ता और देव मंडल के प्रथम पूज्य भगवान गणेश का जयंती पर्व. वांर मास का कृष्ण पक्ष हमारी संस्कृति में स्वर्गवासी हो चुके पूर्वजों के स्मरण के लिए मातृ एवं पितृपक्ष के रूप में मनाया जाता है, तो शु ल पक्ष माता सही शक्ति के जन्मोत्सव का पर्व नवरात्र के रूप में. शु ल पक्ष दश्मी तिथि को समुद्र मंथन से निकले विष का हरण पर्व दशहरा के रूप मंे मनाया जाता है तथा पूर्णिमा तिथि को समुद्र मंथन से निकले अमृत का प्रति पर्व शरद पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है. इसी प्रकार कार्तिक मास में अमावस्या को मनाया जाने वाला भगवान शंकर तथा देवी पार्वती का विवाह पर्व गौरा पूजा में सम्मिलित होने के लिए लोगों को संदेश देने के लिए आयोजन युवा नृत्य के रूप मंे किया जाता है जो पूरे कृष्ण पक्ष में पंद्रह दिनों तक उत्सव के रूप में चलता है.इन पंद्रह दिनों में यहां की कुंवारी कन्याएं कार्तिक स्नान का पर्व भी मनाती हैं. यहां की संस्कृति में मेला मड़ाई के रूप में मनाया जाने वाला उत्सव पर्व भी कार्तिक पूर्णिमा से प्रारंभ होता है जो भगवान शंकर के जटाधारी रूप मंे प्रागट्य होने के पर्व महाशिवरात्रि तक चलता है. श्रावण से लेकर कार्तिक मास तक के इन चार महीनां में इतना सब होने के बावजूद तब यह यों कहा जाता है की चातुर्मास में सपूर्ण देव मंडल सो जाता है इसलिए इन दिनों किसी भी प्रकार का मांगलिक कार्यक्रम नहीं किया जाना चाहिए? या उपरोक्त तथ्यों के आधार पर इस धारणा को छत्तीसगढ़ की संस्कृति पृष्ठ भूमि में स्वीकार किया जा सकता है.

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