Tuesday, July 31, 2007

संयंत्र से जुडे मुद्दों का निपटारा यों नहीं

संयंत्र से जु़डे हुई कई मु े इन दिनों चर्चा में हैं, जिनका निपटारा करने में संयंत्र प्रबंधन कोई रूचि नहीं दिखा रहा है. सबसे बड़ा मु ा तो हाउसिंग लीज का है. लोगों का यह भरोसा है कि हाऊस लीज का छठवां चरण जल्दी ही आएगा. जिन संयंत्र कर्मियों ने अभी तक अपना मकान नहीं बनाया है, उसका लाभ उन्हें मिलने की उम्मीद है. अपने घर का सपना संजोए कई संयंत्र कर्मी यह चाहते हैं कि सेल जल्दी से जल्दी छठवीं हाऊस स्कीम लागू करे और वे अपने सपने को साकार कर सकें. जिस तरह लोगों को छठवीं स्कीम के आने का इंतजार है, उससे लगता है कि स्कीम के लागू होते ही मकान धक-धक बिक जाएंगे और इसे सेल को भी कराे़डों का फायदा पहुंचेगा.ऐसा भी सुनाई पड़ रहा है कि छठवीं हाऊस लीज स्कीम में पूर्व संयंत्र कर्मियों को भी शमिल किया गया है. पूर्व संयंत्र कर्मियों जिनका कोई घर बार नहीं है, और वह रिटायर्ड हो गए हैं और जिन्होंने छत्तीसगढ़ खासकर भिलाई को अपना घर समझ लिया है, यदि इस स्कीम मंे शामिल किया जा रहा है तो यह उनके लिए वरदान साबित होगा.पूर्व संयंत्र कर्मियोें के साथ ही साथ संयंत्र प्रबंधन ने इस बार उदारता का परिचय देते हुए कुछ पत्रकारों को भी मकान आबंटित कने का निर्णय लिया है. यह संयंत्र प्रबंधन का स्वागतेय कदम है और इसकी जितनी सराहना की जाए कम है. लेकिन संयंत्र प्रबंधन ने पत्रकारों को मकान देने का जो पैमाना निर्धारित किया है, वह कुछ विरोधाभासी है. संंयंत्र प्रबंधन का जनसंपर्क इस बात से बखूबी परिचित है कि कौन सा पत्रकार यहाँ कितने सालों से किस पेपर का प्रतिनिधित्व कर रहा है. पत्रकार को मकान न देकर मकान अखबार के नाम से एलाट करना समझ से परे है. जनसंपर्क विभाग प्रबंधन को रिपोर्ट दे सकता है कि कौन सा पत्रकार मकान लेने की पात्रता रखता है.इसमें पारदर्शिता रखने की जरूरत है, योंकि बहुत से प्रतिबद्ध पत्रकार पहले ही साडा द्वारा पत्रकारों को दिए गए भूखंड में बरते गए भेदभाव का दंश झेल चुके हैं. तब भी बहुत सारे अपात्र और बाहरी पत्रकारों के भूखंड हथिया लिए थे और उन्हें मदद करने वाले कुछ तथा कथित लोग ही थे. कम से कम इस बार ऐसा अन्याय और भेदभाव न होने पावे, इसका पैमाना तय किया जाना चाहिए.जहाँ तक हाऊस लीज का मामला है,सेल में छठवीं स्कीम की योजना परित हुई हो या न हुई हो, यह जिले के बिल्डरों के लिए एक करारा झटका है. यदि स्कीम लागू होती है तो बिल्डरों को इससे भारी नुकसान होनाा लाजिमी है. अत: बिल्डर यह कभी नहीं चाहेंगे कि यह स्कीम आए और लागू हो.बीएसपी मंे मेडिकल अनफिट कर्मी के परिवार के एक सदस्य को नौकरी देेने का का मामला भी वर्षों से खटाई में पड़ा हुआ है. वर्तमान में कैंसर, किडनी और अन्य घातक बिमारियों से पीड़ित कर्मचारियों के परिवार को संयंत्र प्रबंधन नौकरी देने पर विचार कर रहा है. इनमें से कई ऐसे कर्मचारी भी हैं, जिन्हें अब तक फैमिली बेनीफिट का लाभ भी नहीं मिल रहा है.इन तमाम मु ों और समस्याआें का निदान जल्दी होना चाहिए ताकि लोगों को राहत मिल सकें.मजदूरों की मौत के मायनेपुरैना में निर्माणाधीन एनएस पीसीएल के पावर प्लांट में फिर एक मजदूर की मौत हो गई. अब तक इस पावर प्लांट में पाँच मजदूरों की मौत हो चुकी है. इस पावर प्लांट में निर्माण कार्य प्रारंभ होते ही हादसों का दौर शुरू हो गया है. कई घायल हुए मजदूरों की न तो कोई सुध लेने वाला है और न ही हो पाती है. दरअसल यह देखने वाली बात है कि उद्योगों में दुघर्टनाएं होती ही यों हैं? मजदूरों को काम करते समय सभी सुरक्षा उपकरण दिए जाते हैं या नहीं, यह देखने की फुर्सत भला किसे है? दुघर्टनाआें का कारण या है, यह बात तो जाँच के बाद भी कभी सामने वहीं आ पाती. घायल या मृतक मजदूर के परिजनों को बस कफन-दफन का इंतजाम करके भाग्य के भरोसे छाे़ड दिया जाता है. इस बात की जवाबदेही तय नहीं की जाती कि मजदूर को मौत का जिम्मेदार कौन मजदूर की लाश पर थाे़डा बहुत काम बंद कर देने से कंपनी या ठेकेदार की जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती. आखिर घायल का इलाज या मजदूर की मौत के बाद उसके परिजनों को दो वक्त की रोटी का जरिया देने की जिम्मेदारी जब तक तय नहीं की जाएगी, तब तक दुघर्टनाएं होती ही रहेगी. आखिर इन दुघर्टनाआें को रोकने के या प्रयास हुए यह कौन बताएगा.

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