Saturday, August 11, 2007

संपादकीय पन्‍ना

संपादकीय : साठ साल बाद भी कहाँ है भारत उदय

यह कितना अच्छा लगता है कि आजादी के 60 साल बाद आज भारत विकसित देश बनने की कगार पर खड़ा है. कहा जा रहा है कि आज देश ने, हर क्षेत्र में अभूतपूर्वक तरक्की की है. नागरिकों का आर्थिक विकास आज लोगों की खरीददारी क्षमता में देखा जा रहा है. देशी और विदेशी माल से आज देश के बाजार अटे पड़े हैं. उदारीकरण ने विदेशी कंपनियों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं. वैश्वीकरण का बाजार गर्म है. शहरों की आबादी के साथ-साथ मकानों और प्लाटों की कीमतें आसमान छूने के बावजूद खरीदी जा रही हैं. युवा वर्ग मोबाईल ंजिंस और बाईक से लैस है. फैशन के साधनों से लैस युवतियों में भारतीयता गायब हो रही है. कानून ऐसे बनाए जा रहे हैं कि अमीर और अधिक अमिर बनता चला जाए तथा गरीब और अधिक गरीब. तस्वीर के एक पहलू में भारत उदय है, और दूसरे में वह स्याह अंधेरे में डूबा हुआ है. शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, रोजगार जैसी मूलभूत समस्याओं से आम आदमी निरंतर जूझ रहा है. सेज के बहाने सोना उगलने वाली उपजाऊ जमीनें पूंजीपतियों, नेताओं और अफसरों के साथ मिलकर हड़पी जा रही हैं. विस्थायन और पलायन करते लोगों को सब्ज बाग दिखाया जा रहा है कि पूंजीपतियों द्वारा लगाए जाने वाले उद्योग-धंधों से देश का विकास होगा और भूमंडलीकरण के इस दौर में भारत अग्रणी देश कहलाएगा. यह बात अब किसी से छुपी हुई नहीं है कि बहुराष्टीय कंपनियां इस बात पर अड़ी हुई हैं कि उन्हें अपने उद्योग स्थापित करने के लिए देश के गरीब किसानों की उपजाऊ भूमि ही चाहिए. इस काम को अंजाम देने के लिए देने के लिए देश के गरीब किसानों को भिखमंगा बनाने के लिए, उन्हें आत्महत्या को मजबूर करने और अपने चारों ओर सुरक्षा रूपी कवच तैयार करवाने के लिए पूंजीपतियों ने देश के निष्ठुर राजनेताओं और अफसरों को अपनी मुठ्ठी में करके सेज और सिलिंग जैसे कानून बनवाए. यही कारण है कि पिछले पाँच सालों में देश में लगभग 6०,००० किसानों ने आत्महत्या कर ली है. ऐसे कई अन्य कठोर कानूनों की आड़ में गरीबों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ जारी है. पूंजीपति देश की जनता को अपनी कंपनियों में नौकरी का लालच देकर उन्हें अपना गुलाम बना लेना चाहते हैं ठीक, उसी तरह जैसे आज से सैकं़डों वर्ष पूर्व ईस्ट इंडिया कंपनी ने किया था.

अभी कुछ ही दिन पहले रांची स्थित रिलायंस कंपनी के सब्जी काम्पले स पर वहाँ के खुदरा गरीब विक्रताओं ने धावा बोल दिया था. इन गरीब सब्जी विक्रेताओं का आरोप है कि जब से रिलायंस ने सब्जी बेचना शुरूकर दिया है, उनकी सब्जी बिकना बंद हो गई है और उनके बालबच्चों के सामने भूखों मरने की स्थिति उत्पन्न हो गई है. इन गरीब सब्जी विक्रेताओं के आंदोलन को कुचलने के लिए पुलिस बल का प्रयोग किया गया. मीडिया तथा अखबार वालों ने इन्हें गुंडा बताया. यह बात समझने की है कि बहुराष्‍ट्रीय या देशी कंपनियों भारत में अपनी पूंजी का निवेश इसलिए नहीं करने जा रही हैं कि उन्हें भारत भूमि या भारतवासियों से प्यार है. यह लोग यहाँ की जनता का शोषण कर मात्र चंद वर्षों में ही अपनी लागत पूँजी को कई गुना बढ़ाना चाहते हैं. एक तरह से भारत इनके लिए एक उपनिवेश बनताा जा रहा है. हमारे कुटीर उद्योग से लेकर लघु उद्योग धंधों एवं संचार तंत्र पर भी पूंजीपतियों ने अपना एकाधिकार जमा लिया है. अब बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने रिटेल कांउटरों से तेल, साबुन, आटा, चावल, गु़ड, चीनी, मैदा, सूजी, माचिस, मोमबत्ती, पेस्ट तथा दाल से लेकर सब्जी और फूल भी बेचेंगी. मतलब छोटे-छोटे व्यापारियों से उनका व्यापार छीन लिया जाएगा. जुलाहे, बुनकर, तेली, नाई, धोबी, चर्मकार, लोहार, बढ़ई, कोईरी, कबाड़ी और माली से उनकी आजीविका छीनने की तैयारी हो चुकी है.

भारत की आजादी के 60 वर्षों के इतिहास की पड़ताल करते हुए प्रतिष्ठि त पत्रिका टाइम ने कहा है कि भारत के दुनिया चुनौतियों का अंबार है, लेकिन सामने का सबसे बड़ा लोकतंत्र आत्म विश्वास के साथ क्ेब्स्त्र के सपनों को लेकर प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रहा है. पत्रिका में भारत के संबध में भारतीय मध्यम वर्ग, धर्म, राजनीति, अर्थव्यवस्था, और मानवीय मु ों पर चर्चा करते हुए कहा गया है कि अब भारतीय कारपोरेट जगत सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक जबरदस्त प्रतिस्पर्धा सिद्घ हो रहा है. इस दृष्टि कोण से तो वाकई भारत एक समद्घशास्त्री देश है!



पाकिस्तान में इमरजेंसी अब-तब


पाकिस्तान में आपातकाल के आसार नजर आ रहे हैं. अमेरिका दबाव में इस्लामाबाद की लाल मस्जिद में सैनिक कार्रवाई करने वाले जनरल परवेज मुशर्रफ अब आतंक वादियों की तरफ से जान का खतरा तो महसूूस कर ही रहे हैं, उनके सामने कई नई मुसीबतें भी खड़ी हो गई हैं. इस बीच सुप्रीम कोर्ट की विशेष पीठ ने जस्टिस इफतेखार चौधरी का निलंबन र करके राष्‍ट्रपतिमुशर्रश को ऐसा झटका दिया है कि, जिससे उबरना उनके लिए मुश्किल है. उन पर पाकिस्तान में लोकतंत्र बहाल करने के लिए अन्तर्राष्‍ट्रीय दबाव भी लगातार बढ़ता जा रहा है. इन तमाम दबावों के चलते जनरल देश में किसी भी वक्त इमरजेंसी लागू कर कसते हैं, ताकि अवाम के बढते आक्रोश को फौजी ताकत से कुचला जा सके.

''पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टोसे हुई बातचीत भी असफल हो गई इससे मुर्शरफ का राजनैतिक संकट गहरा गया``

उग्रवाद के खिलाफ जंग में मुशर्रफ को मजबूत साथी करार देते हुए अमेरिकी राष्‍ट्रपतिने कहा-बिला शक मैं उनके साथ लगातार कोशिश कर रहा हूँ, ताकि पाकिस्तान में लोकतंत्र और आगे बढ़े.

लीवलैण्ड में मौजूदा बुश को दूर इस्लामाबाद में बैठे मुशर्रफ का इस तरह पीठ थपथपाना अकारण कतई नहीं था. इस्लामाबाद मंे पाक सेना को लाल मस्जिद परिसर में निर्णायक कार्रवाई किये बमुश्किल चौबीस घंटे बीते थे. कट्ट पंथियों और दहशतगर्दों के अभेद्य किले के तौर पर उभरी लाल मस्जिद पर जनरल की गाज गिरने की देर थी कि पाकिस्तान मंे अंदरूनी परिदृश्य और समीकरण बदल गए थे. लाल मस्जिद समेत तमाम मस्जिदों और मदरसों में बरसों के अंतराल में जो जहरबुझी साजिशें आहिस्ता-आहिस्ता रची जा रही थीं और जंगी साजो-सामान्य जुटाये जा रहे थे, उनसे मुशर्रफ अपरिचित नहीं थे. पूरब और पश्चिम के अपने पड़ोसियों के खिलाफ राजनय और छद्माऱ्युद्घ में उन्हांेंने स्वयं इन्हें शह दी और गिजा भी मुहैया की. मगर जुलाई के दूसरे मंगलवार ने यक-बऱ्यक सियासी फिजा बदल दी. अंग्रेजी अखबारों के जुमले में कई तो मैसेकर ऐट द मॉस्क ने मुशर्रफ और मदरसों-मस्जिदों के बीच नफरत और गुस्से की ऐसी चटख लकीर खींच दी थी कि जनरल मुशर्रफ जहां आतंकवाद को नेस्तनाबूद करने की कसम खा रहे थे, वहीं अलकायदा सहित तमाम उग्र और आतंकवादी संगठन मुशर्रफ को अमरीकी पिठ्ठ बताकर उन्‍होंने उखाड़ फेंकने के लिए इस्लाम के अनुयाइयों से जेहद की अपील कर रहे थे.

गौरतलब और दिलचस्प है कि इस्लाम की दुहाई दोनों ने दी. मुशर्रफ ने कहा-उग्रवादियों का रास्ता इस्लाम का रास्ता नहीं था. उन्हांंेने कहा-मैं अल्लाह से दुआ करता हूं कि वह पाक को आतंकवाद से बचाए. उधर अलकायदा के लीडर नंबर टू और ओसामा बिन लादेन के दाहिने हाथ अल जवाहिरी ने कहा- पाकिस्तान को सिर्फ जेहाद ही बचा सकता है.मुशर्रफ और उसके शिकारी कुत्तों ने ईसाइयों और यहूदियों की सेवा में पाकिस्तानी मुसलमानों के सामान को मिट्ट ी में मिला दिया है. इंतकाम की आग में धधकते हुए जवाहिरी ने दो टूक लहजे में कहा-इस अपराध को केवल खून से ही धोया जा सकता है.

दहशतगर्तों और चरमपंथियों के बलबालने की वजह साफ है. उन्‍हें जनरल से ऐसी कार्रवाई का कतई अंदेशा नहीं था. लाल मस्जिद पर फौजी कहर के बाद जनरल के ऐलान, कि भविष्य में किसी मस्जिद या मदरसे को उग्रवादी एजेंडा चलाने की इजाजत नहीं दी जाएगी, पाकिस्तान में चौतरफा खतरे की घंटी घनघना उठी. नतीजतन उग्रवादियों के गढ़ पश्चिमोत्तर कबीलाई इलाके मंे जगह-जगह जलजला आ गया. जुम्मे के रोज मुत्ताहिदा मजलिस-ए-अमल ने देश भर में प्रदर्शन किया. कबीलाई इलाके में सारे सरकारी दफतर और बैंक बंद हो गए.सशस्त्र आतंकवादियों ने शुक्रवार को छुट्टी और शरियत के पालन की मुनादी कर दी. स्वात की तरफ एक फैजी दस्ता जा रहा था. उसके पुल से गुजरने की देर थी कि जबरदस्त धमाका हुआ. दस्ता आगे बढ़ा ही था कि विस्फोटकांे से लदी एक तेज रफतार कार उससे आ टकराई. इस हादसे में छह लोग मारे गए. इससे पेशतर मीरन शाह में एक वालंटियर ने खुद को बम से उड़ा लिया, जिससे चार अन्य लोग मारे गए और तीन घायल हुए. फिदाइन हमलों का सिलसिला यहीं नहीं रूका. उत्तरी वजीरिस्तान मंे शनिवार को सूरज उगा ही था कि आर्मी के काफिले में विस्फोटकांे से भरी एक कार घुस गई. मीरन शाह के करीब दाज- नटई में हुए इस हादसे मंे चौबीस पाक फौजी मारे गए और बीस जख्मी हुए. उधर कट्ट पंथी जमात-ए-इस्लामी के अध्यक्ष काजी हुसैन अहमद ने विरोधस्वरूप नेशनल असेम्बली से इस्तीफा दे दिया.मुशर्रफ के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए उन्होंने उलेमाओं और मौलविया की बैठक भी बुला डाली. ताकि मुशर्रफ के खिलाफ एजेंडा तैयार हो सके. काजी ने बेलाग कहा कि मुशर्रफ ने अमेरिका को खुश करने के लिए लाल मस्जिद के खिलाफ कार्रवाई की है. गौरतलब है कि जमात-ए-इस्लामी का लक्ष्य पाकिस्तान में इस्लामी राज्य की स्थापना है और उसकी मान्यता है कि चुनाव के जरिए सत्ता हासिल करके भी इस्लामी राज्य की स्थापना मुमकिन है. इस्लामाबाद के भीड़ भरे इलाके में रेड जोन में स्थित लाल मस्जिद की फौजी घेराबंदी करीब एक हफते चली और निर्णायक फौजी कार्रवाई तकरीबन छत्तीस घंटे.मूलत: देवबंदियों की इस विशाल इमारत में कई तहखाने हैं और वहां पांच सात हजार लोग रह सकते हैं.

उस रोज भी वहां सैकड़ों की तादाद में खवतीन मौजूद थीं.संगीन हालात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि े जुलाई को सरहदी बाजौर एजेंसी इलाके में मुशर्रफ के खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन हुआ. इसमें करीब ख्०,००० तालिबान समर्थक शरीक हुए. उन्होंने लाल मस्जिद के तौलवी गाजी के समर्थन में नोरबाजी की और उससे घुटने टेकने के बाजय शहीद हो जाने की गुजारिश की. मौलाना फकीर मुहम्मद ने अल्लाह से दुआ की कि वह मुशर्रफ को तबाह कर दे. मौलाना इनायतुर्रहमान ने ऐलान किया कि नमाज और रोजे की तरह जेहाद भी जरूरी है.
तख्तियों और नारों में मुशर्रफ मुर्दाबाद अमेरिका मुर्दाबाद बुश का नाश हो और अमेरिका के साथ ग ार हैं जैसी बातें कही गइंर्. इस वाकये की खास बात यह है कि लोगबाग एके ब्स्त्र राइफलों और राकेट लांचरों से लैस थे और उन पर जूनूं तारी था.

यह बेवजह नहीं है कि राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने आपरेशन सनराइज, जिसे मीडिया ने आपरेशन साइलेंस की भी संज्ञा दी थी, के बाद टेलीविजन पर जब राष्ट ्र को सम्बोधित किया तो उनका चेहरा उतरा हुआ था.



माँ का दूध सर्वोत्तम क्‍यों?


माताएं अपने दूध को लेकर दिग्भ्रमित रहती हैं. वे इस तथ्य से अनभिज्ञ रहती हैं कि माँ का दूध नवजात बच्चों के लिए अमृत तुल्य है. यह दूध उन्‍हें अनेक बिमारियों से बचाता है. जिन बच्चों को माँ का दूध नहीं मिलता है, उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता क्षीण होती है. पितृसत्तात्मक समाज, कुपोषण एवं साक्षरता-शिक्षा का अभाव एवं गरीबी-महिलाओं एवं बच्चों के खराब स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार कारक है.

तुहिन देब


आजादी के आधी शताब्दी के बाद भी हमारे देश में महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य का स्तर बुहत अच्छा नहीं है. आज भी प्राचीन रूढ़िवादी परम्पराएं अपना जाल बिछाए हुए हैं. तमाम विकासात्मक योजनाओं और कार्यक्रमांे के बावजूद समाज की अधिकांश आबादी पुरानी परंपराओं का ही अनुसरण कर रही है.

ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा शहर की महिलाएं अपने और नवजात शिशु के स्वास्थ्य के प्रति गंभीर दिखाई नहीं देती हैं. यही वजह है कि जहां प्रसव के दौरान अधिकांश महिलाओं में खून की कमी पाई जाती है वही कुपोषण तथा संक्रामक बीमारियों के कारण लाखों बच्चों का शारीरिक तथाा मानसिक विकास नहीं हो पाता है. इसकी प्रमुखा वजह है नवजात बच्चों को पर्याप्त मात्रा में माँ का दूध नहीं मिलता है.

माताएं अपने दूध को लेकर दिग्भ्रमित रहती हैं. वे इस तथ्य से अनभिज्ञ रहती हैं कि माँ का दूध नवजात बच्चों के लिए अमृत तुल्य है. यह दूध उन्‍हें अनेक बिमारियों से बचाता है. जिन बच्चों को माँ का दूध नहीं मिलता है, उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता क्षीण होती है. पितृसत्तात्मक समाज, कुपोषण एवं साक्षरता-शिक्षा का अभाव एवं गरीबी-महिलाओं एवं बच्चों के खराब स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार कारक है.

छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में कई महिलाएं नवजात बच्चों को तीन दिन तक अपना दूध नहीं पिलाती हैं. योंकि वे यह मानकर चलती है कि जिस प्रकार गाय का दूध प्रजनन के बाद सात दिन तक पीने योग्य नहीं होता है उसी प्रकार नवजात बच्चे को अपना दूध तीन दिन तक पिलाना नुकसानदायक होता है.

चिकित्सक कहते हैं कि सर्वप्रथम हमें माँ के दूध के बारे में व्याप्त भ्रामक धारणाओं के खिलाफ अभियान चलाना होगा. समाज को बताना होगा कि माँ का दूध नवजात बच्चों के लिए सर्वोंत्तम प्राकृतिक आहार है. माँ का दूध बच्चों के लिए सदैव शुद्घ, ताजा और उसके शारीरिक तापमान से मेल खाता सहज ही उपलब्ध रहता है.जन्म के आधे घण्टे की अवधि में बच्चे को माँ का दूध पिलाना जरूरी होता है. इस दौरान दूध निकलने की प्रक्रिया तेज होती है और माँ व बच्चे के मध्य प्यार पनपता है. नवजात बच्चे को पांच से छह महीने की अवस्था तक केवल माँ का दूध ही पिलाना चाहिए. इस अवधि में उसे पानी, शहद, पानी मिला दूध,घूटी, गु़ड एवं आजवाइन काढ़ा नहीं पिलाना चाहिए.
प्रसव उपरांत माँ का जो दूध निकलता है उसे कोलोस्ट्रोम कहते हैं. वह बच्चे के लिए अमृत के समान होती है? उसकी एक बूंद एक लीटर दूध के बराबर होती है. ये कोलोस्ट्रम माँ के दूध के रूप में दो-तीन दिन तक बूंद-बूंद निकलता है. कुछ माताएं यह समझती हैं कि उनकोदूध नहीं आ रही है, जबकि उनका यह सोचना गलत होता है. माताएं यह सोचकर ही बच्चे को स्तनपान नहीं कराती हैं, जबकि नवजात बच्चेे को अधिक से अधिक स्तनपान कराना चाहिए. स्तनपान कराने से अधिक दूध आता है. जो माताएं नवजात बच्चे को ऊपरी दूध पिलाती हैं उससे बच्चे के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. दस्त, डायरिया, बुखार जैसे रोग का वह शिकार हो जाता है योंकि ऊपरी दूध में ऐसे तत्व ही नहीं होते कि जो बच्चे को रोग प्रतिरोधक शक्ति प्रदान करें.

माँ के दूध नहीं आने के पीछे जो कारण हैं उसमें प्रमुख हैं-भरपूर पोषक आहार नहीं लेना. प्रसूति के बाद परिजन महिला के खान-पान में एहतियात बरतते हैं. वे यह मानकर चलते हैं कि महिला को जो भोजन दे रहे हैं वह उसके स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त है.जबकि महिला को दो गुनी शक्ति की जरूरत होती है. धात्री माता को दाल-रोटी, दाल, चावल, दाल-दलिया, दूध-दलिया, खिचड़ी, हरी सब्जियां, दूध का सेवन कराना चाहिए. इस प्रकार के भोजन से माँ को पर्याप्त मात्रा मंे दूध आता है. अगर इसके बावजूद भी दूध नहीं बनता है तो महिलाओं को अपने चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए.

यदि नवजात बच्चा ठीक तरह से स्तनपान नहीं कर पाता है तो माँ का दूध कटोरी में निकालकर बच्चे को चम्मच से पिलाना चाहिए. दूध नहीं आने की स्थिति में बच्चे को गाय का दूध पिलाना चाहिए. योंकि गाय के दूध को माँ के दूध के समान माना गया है. कटोरी में निकाला गया दूध ढंाक कर रखना चाहिए. स्वच्छ वातावरण मंे रखना चाहिए.

नवजात बच्चे को दूध पिलाने में सावधानी बरतनी होती है. लिटाकर बच्चे को दूध कभी नहीं पिलाना चाहिए.दूध पिलाने के बाद बच्चे को कंधे पर लेकर डकार दिलवाना चाहिए. यदि बच्चा ख्ब् घण्टे में म् या म् से अधिक बार पेशाब करता है तो समझना चाहिए कि माँ का दूध बच्चे के लिए पर्याप्त है.माताएं सदैव यह ध्यान रखंे कि चार से छह माह में केवल माँ का दूध ही नवजात बच्चे के लिए जरूरी है. छठा महीना लगने पर बच्चे को माँ के दूध के साथ-साथ मसला हुआ केला, दाल-चांवल की खिचड़ी,दलिया देना चाहिए. दूसरे साल लगने तक बच्चे को इसी तरह के ठोस आहार की आवश्यकता होती है. नवजात बच्चे को बोतल से दूध नहीं पिलाना चाहिए. न ही बच्चे को चुसनी या निप्पल जैसी कोई चीज दें. बोतल से दूध पिलाने से कई बच्चे गंभीर बीमारियों के शिकार हो जाते हैं. जितनी ज्यादा बार बच्चा बीमार पड़ेगा,उतना ही अधिक वह कुपोषण का शिकार होगा. इसलिए जिन इलाकों में या समुदायों में पीने का साफ पानी नहीं होता, वहां पहले चार-छह महीनों में स्तनपान करने वाले बच्चे की अपेक्षा बोतल से दूध पीने वाले बच्चे के दस्तों के मरने का खतरा ख्भ् गुना अधिक होता है.

स्तनपान से जहां नवजात बच्चों को लाभ है वहीं महिलाआंे को भी फायदा होता है. स्तनपान कराने से माँ व बच्चे के बीच संबंध प्रगाढ़ होते हैं. जो माँ अपने बच्चे को दूध पिलाती है उनमें स्तन, बच्चेदानी व अंडाशयोंे का कैंसर होने का खतरा कम हो जाता है. माँ को बच्चे के जन्म के बाद रक्तस्त्राव कम होता है. प्रसव पश्चात गर्भाशय पूर्व अवस्था में शीघ्र आ जाता है. माँ जब तक बच्चे को दूध पिलाती है, उसके पुन: गर्भवती होने की संभावना कम रहती है. इस तरह दो बच्चे के जन्म में अंतर रखने में मदद मिलती है.

स्तनपान सप्ताह के दौरान हम सभी का कर्तव्य बनता है कि माताओं को स्तनपान के महत्व से परिचित कराएं. स्तनपान को कार्यक्रम न बनाकर अभियान का रूप दिया जाए. इससे ही स्तनपान सप्ताह सार्थक होगा.



सप्ताह की कविता

रूरी है घर लौटना
-अमित जांगड़ा


घर लौटना बहुत जरूरी है जैसे कि पक्षी लौटते हैं
दिन छिपने से पहले हर रोज, अपने-अपने घांेसलों में
जैसे कि सूरज लौटता है सवेरा बनकर
वहाँ जहाँ सोते हैं लोग
मिटाने को सदियों की थकन एक ही रात में
और फिर मैं घर न लौटा तो
कौन है जो लौटेगा घर मेरे?
पत्नी कैसे देख पायेगी करवा चौथ की रात्रि
चाँद को अर्ध्य देते समय
छलनी में से चेहरा मेरा?
मुनिया जिसने लिये हैं
इम्तहान के पर्चों मंे अव्वल दर्जे के अंक
बिन दिखलाये हुये कैसे सो पायेगी?
और जो दिवारें
पहचान लेती हैं कदमों की आहट
अठखेलियाँ करती हैं मुझसे
खेलती हैं आँख-मिचौनी
घर पहुंचने पर दाै़डती हैं गले मिलने को
बिन स्पर्श कैसे जी पायंेगी?
और भी बहुत-सा भाग घर बाकी होता है
जो मेरे लौटने का इंतजार करता है पल-पल
बिखरा रहता है आस-पास
खोया-खोया उदास-उदासबस,
घर भर की चुप्पी ताे़डने के वास्ते ही जरूरी है
घर लौटना मेरा

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