Saturday, August 11, 2007

छत्‍तीसगढ प्रदेश हलचल

प्रेम प्रकाश पाण्डेय ने साढ़े तीन साल

भिलाई. कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक सुरक्षा संघर्ष समिति छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष आरएस मौर्या ने कहा है कि भिलाई के विधायक और विधानसभा अध्यक्ष प्रेम प्रकाश पाण्डेय ने पिछले साढ़े तीन साल में इतने विकास कार्य कर दिखाए हैं, इतने पिछले पचास साल में नहीं हुए.

भिलाई विधानसभा क्षेत्र में हमेशा से व्याप्त रही पेयजल की समस्या को अपने कार्यकाल में गंभीरता से लेते हुए उन्होंने वृहद पेयजल योजना को घर-घर तक पहुँचा दिया है. इससे लोगों की वर्षों से लंबित पेयजल की समस्या से उन्हें निजात मिली. भोलेनाथ के भक्त श्री पान्डेय ने एक तरह से गंगाजल को घर-घर पहुंचाकर उनकी आत्मा को तृप्त किया है.

इसी तरह भिलाई के वार्ड क्षेत्र तक पक्की सड़कों का निर्माण, तालाबों का सौंदर्यीकरण, केंप-ख् जर्जर पड़े मंगल भवन को क्० बिस्तर वाले अस्पताल में परिवर्तित करके उसका कायाकल्य, खुर्सीपार शासकीय अस्पताल को क्० बिस्तर वाला बनाना सहित पुरैना बस्ती में छाए आदिम युग के अंधेरे को समाप्त कर वहाँ विद्युत पहुँचाकर बस्ती के घर-घर को रोशनी से जगमगा देना तथा नगर पालिक निगम भिलाई के फ्म्फ् कर्चचारियों का नियमितीकरण एवं खुर्सीपार पुलिस चौकी को थाने का दर्जा दिलाना उनके कार्यकाल की विशेष उपलब्धियां रही है.इसी तरह भिलाई निगम के माध्यम से शासन से कराे़डों रूपए का योगदान दिलाकर भिलाई को मुंबई, दिल्ली जैसा शहर बनाने के लिए सतत प्रयासरत रहना उनकी प्रमुख प्राथमिकता में शामिल हैं. श्री मौर्या ने कहा कि पे्रम प्रकाश पाण्डेय के नेतृत्व में भिलाई निरंतर उतरोत्तर प्रगति पथ पर अग्रसर है और निकट भविष्य में भिलाई का अभूतपूर्व विकास होना निश्चित है.

पूरक परीक्षा परिणाम एक सप्ताह पहले घोषित करें-कुरैशी

छत्तीसगढ़ के पूर्व राज्यमंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष बदरूदीन कुरैशी ने पं. रविशंकर शुक्‍ल विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. चतुर्वेदी को पत्र लिख कर आग्रह किया है कि महाविद्यालीन पुनर्मूल्यांकन नतीजा के परिणाम आवेदन के एक सप्ताह पूर्व घोषित किए जाएं, ताकि विद्यार्थी को आर्थिक और दोहरी मानसिकता का बोझ न उठाना पड़े.
कुरैशी ने अपने पत्र में लिखा है कि जून से लेकर जुलाई अंतिम सप्ताह तक अधिकतर महाविद्यालयीन परीक्षा के रिजल्ट निकलते हैं. उसके पश्चात विद्यार्थी पुनर्मूल्यांकन के लिए आवेदन देता है. पुनर्मूल्यांकन का रिजल्ट पूरक परीक्षा की तिथि के आस-पास आता है और विद्यार्थी को दोहरी मानसिकता से गुजरना पडता है. वह पुनर्मूल्यांकन के रिजल्ट का इंतजार कर ले या रिजल्ट आने में देरी होने की स्थिति में पूरक परीक्षा की फीस जमा कर पूरक परीक्षा में बैठे. कभी-कभी ऐसी विकट स्थिति आ जाती है कि विद्यार्थी के पूरक परीक्षा के दिन पुनर्मूल्यांकन का परिणाम आता है जिसमें वह पास हो जाता है तो वह बड़े पशोपेश की स्थिति में आ जाता है कि वह पूरक परीक्षा दिलाए या या करे. इससे विद्यार्थी का समय,धन एवं दोहरी मानसिकता आदि सबका एकसाथ नुकसान उठाना पडता है. इसीलिए पूनर्मूल्यंाकन का परिणाम पूरक परीक्षा के फार्म जमा करने की तिथि के एक सप्ताह पूर्व हर हालत में आ जाना चाहिए इससे विद्यार्थियों को पूनर्मूल्यांकन का लाभ मिल सके.

इस नियम को पं. रविशंकर विश्वविद्यालय में भविष्य में होने वाली सभी महाविद्यालीन परीक्षाआें के लिए लागू कर देना चाहिए जिससे विद्यार्थियो को बड़ी राहत मिलेगी और उन्हें दोहरी मानसिकता का शिकार नहीं होना पड़ेगा.




सत्ता की बिसात पर आदिवासी मोहरे आजाद चिंगारी

विक्रम जनबंधु

छत्तीसगढ़ में भाजपा शासन को साढ़े तीन साल पूरे हो गए हैं. आम चुनाव होने में ड़ेढ साल का समय शेष है. तीन महीने पहले लागू हो जाएगा. बचे सवा साल. ऐसे में सत्तारुढ़ भाजपा के पास पुनर्वाषसी की दो स्थितियां हैं. एक सरकार का कामकाज और दूसरा संगठन की जमीनी पकड़. लेकिन सरकारी कामकाज पर नौकरशाही हावी है. इससे स्वयं भाजपा कार्यकर्ता रुष्ट हैं. जो काम करवाने में सक्षम हैं, वे भ्रष्‍टाचार के कारण बदनाम हैं. इससे आमजनों को वह अहसास नहीं हो रहा है कि आखिर आगामी चुनाव भाजपा कैसे जीतेगी.

मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह स्वयं ईमानदार और काम करने वाले व्यक्ति हैं. लेकिन वे मीर जाफरों और जयचदों से घिरे हुए हैं. संगठन के पास जमीनी ह कीकतों का सामना करने की जुर्रत नहीं है और मंत्री विधायक सरकार की नहीं बल्कि अपनी छवि बनाने में लगे हैं. वैसे देश में जितने भी भाजपा शासित राज्य हैं, उनमें छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार सबसे मजबूत है.

मजबूत इसलिए भी कियोंकि यहां पर विपक्ष बहुत कमजोर है. वह बिखरा हुआ है और आपसी गुटबाजी और अन्तर्कलह में डूबा हुआ है. कांग्रेस का बिखराव भाजपा के लिए वरदान साबित हो रहा है. न सल प्रभावित क्षेत्रों में आदिवासियों का स्वस्फूर्त सलवा जुडूम आंदोलन फिलहाल प्रदेश सरकार के लिए आ सीजन का काम कर रहा है.
जिन क्षेत्रों में पुलिस बलों को न सलवादियों से सीधा मुकाबला करना पड़ रहा था, वहां सलवा जुडूम सरकार और न सलवादियों के बीच ढाल बनकर खड़ा हो गया है. इन सबके बीच भाजपा नेताआें का विशेषकर विधायकों, मंत्रियों और सांसदों का आक्रोश काफी मुखर होता जा रहा है. यह भाजपा के लिए घातक साबित हो सकता है. वैसे भी ग्रामीण आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा का जनाधार कमजोर माना जाता रहा है. प्रदेश में आदिवासियों की आबादी फ्ख् प्रतिशत से भी ज्यादा है. राज्य में विधानसभा की फ्भ् तथा लोकसभा की ब् सीटें आरक्षित की गई है. इन्हीं फ्भ् आदिवासी सीटों पर सभी की निगाहें टिकी रहती हैं. आदिवासी समर्थन की बदौलत ही पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा क ख्ब् सीटें मिली थीं, बाकी क्० सीटें कांग्रेस की झोली में गई हैं. लेकिन भाजपा में आदिवासी विधायकों और सांसदों की बहुमत के बावजूद पार्टी से आदिवासी असंतुष्ट यों हैं, यह सवाल आज राजनीतिक चिंतकों को मथ रहा है?

पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनने से पूर्व सांसद बलीराम कश्यप एक दबंग आदिवासी नेता के रुप में अपनी पहचान बन चुके थे. पर जैसे ही छत्तीसगढ़ राज्य बना, उनकी दबंगता हाईकमान के नजदीकी लोगों को पसंद नहीं आई, तो उन्हें हाशिए में डाल दिया गया. विधायक से सांसद बने नंदकुमार साय के साथ भाजपा ने साजिश करके उन्हें पीछे धकेल दिया, वह भी किसी से छुपा नहीं है.

सीधे सरल नंदकुमार सायं को लखीराम अग्रवाल का खासम समझा जाता था. पर जब उन्होंने भी स्वतंत्र आकाश में अपने पंख पसारने शुरु किए तो उनके पंश कुतरकर ननकीराम कंवर को आगे कर दिया गया. यह वह समय था जब सत्ता में आदिवासियों का मु ा जोर पकड़ रहा था. इस मु े को दबाने के लिए भाजपा ने ननकीराम कंवर को रमन मंत्रिमंडल में केबिनेट मंत्री बना दिया. पर तब तक आदिवासी मुख्यमत्री की बात जोर पकड़ चुकी थी. अब इस मु े को दबाने के लिए शिव प्रताप सिंह को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनाकर आदिवासियों की कमान सौंप दी गई. लेकिन जब भाजपा हाईकमान को यह आभास होने लगा कि अपने अधिकारों को लेकर वह भी अपना मुंह खोलने लगा तो उन्हें भी अपमानजनक तरीका अपनाकर पद से हटा दिया गया. सिर्फ इतना ही नहीं ब ननकीराम कंवर यह चिन्हित करने लगे कि प्रदेश में राजस्व का नुकसान कौन लोग कर रहे हैं तो उनसे राजस्व विभाग सहित सभी विभाग छीनकर उन्हें मंत्री पद से ही हटा दिया गया. ऐसी स्थिति में आदिवासियों को यह न लगे कि भाजपा शासनकाल में उन्हें उपेक्षित किया जा रहा है, इसलिए आदिवासियों को छलने रामविचार नेताम को गृहमंत्री बने रहने दिया गया, जबकि कानून और व्यवस्था की जो स्थिति प्रदेश में है, वह किसी से छुपी हुई नहीं है. यह स्वाभाविक भी है कि जब प्रदेश में सत्तारुढ़ भाजपा में आदिवासी विधायकों की संख्या ख्ब् है तब वे आदिवासी नेतृत्व या उनके महत्व की बात यों न उठाएं? लेकिन नेतृत्व क्षमता को प्रदर्शित करने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की है. एक सवाल लोगों के मन में यह भी मथ रहा है कि जब तुनाव को बमुश्किल साल ड़ेढ साल ही बाकी रह गया है, तब आदिवासी महत्व का भला क्‍या औचित्य है?



अपना प्रदेश महान


मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के गृह जिले कवर्धा का बिलासपुर से सटा क्षेत्र कुंडा आजादी के म्० साल बाद आज भी अत्यंत पिछड़ा हुआ इलाका है. यहां बुनियादी सुविधाआें का अभाव तो बना ही हुआ है कुंडा क्षेत्र का संपर्क कवर्धा जिला मुख्यालय से टूटा हुआ है. इस मार्ग पर मात्र पांच-छ: टेि सयां और इतनी ही बसें चलती थीं, जहां अब सड़कों पर मिट्ट ी मुरम डालकर छोड़ देने के कारण आवागमन पूर्णत: बंद हो गई हैं इसकी वजह से लोगों को चिकित्सा, न्यायालयीन पेशी तथा अन्य शासकीय कार्यों को लेकर अनावश्यक रुप से भ्० किमी अधिक फासला तय करके कवर्धा आना पड़ता है, जिससे धन एवं समय की बर्बादी होती है.

कुंडा को विकासखं़ का दर्जा दिए जाने की मांग वर्षों पुरानी है, जो मुख्यमंत्री का जिला बनने के बाद भी अब तक पूरी नहीं हुई है. कुंडा हर क्षेत्र में पिछड़ा हुआ तो है ही, यहां शिक्षा, स्वास्थ्य, आवागमन, सिंचाई सुविधाआें का सदैव अभाव रहा है. ख्ख्ब् वर्ग किमी क्षेत्र में त्त्त्त् ग्रामों के लगभग एक लाख आबादी वाला यह क्षेत्र हमेशा से ही शोषित, पीड़ित एवं उपेक्षित रहा है.

यहां बिलासपुर की ओर से मंडला रेल लाईन बिछाए जाने की मांग भी वर्षों पुरानी है. बिलासपुर मंडला रेल्वे ट्रेक प्रारंभ हो जाने से क्षेत्र में विकास की नई इबारतें लिखी जा सकती हैं. इस ट्रेक के निर्माण कार्य के लिए वर्षों पहले, सर्वेक्षण भी किया जा चुका है. इस सर्वेक्षण के लिए दस लाख रुपए भी स्वीकृत हुए थे, जिसका कोई ब्योरा नहीं है. बिलासपुर से तखतपुर सड़क मार्ग पर मिट्ट ीकरण का कार्य किया गया था, लेकिन आजादी के म्० साल बाद भी यह किसी को मालूम नहीं है.



मुख्यमंत्री के कड़े तेवर


जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, मुख्यमंत्री रमन सिंह अपने तेवर दिखा रहे हैं. रोजगार गारंटी योजना में गड़बड़ी होने पर उन्होंने कांकेर के कले टर जी एस धनंजय को हटा दिया और जिला पंचायत के तात्कालीन सीईओ के पी देवांगन को निलंबित कर दिया है.इन लोगों ने रोजगार गारंटी योजना की करीब पाँच कराे़ड रूपए की राशि में से ब्० प्रतिशत राशि का उपयोग दूसरी मद में खर्च कर दिया था.जहाँ तक प्रदेश में रोजगार गारंटी योजना का सवाल है वह गरीबों के पैसों पर डकैती डालने की योजना में बदल गया है. फर्जी मस्टर रोल में जिन ग्रामीण गरीबों को काम नहीं मिला उनका नाम दर्ज कर उनकी मजदूरी का फर्जी भुगतान कर लाखों रूपए डकारे जा रहे हैं. रायपुर जिलेे के ही मात्र ख्०० किमी. की दूरी पर स्थित विन्द्रानवागढ़ क्षेत्र की ग्राम पंचायत बजाड़ी में क् अप्रैल से रोजगार गारंटी कानून के तहत काम के लिए जिन मजदूरों ने आवेदन किया था, उन्हेें न तो काम मिला न ही नियमों के तहत क्भ् दिनों के बाद बेरोजगारी भत्ता ही मिला. इसके चलते गरीब मजदूर काम की लाश में पलायन कर गए हैं. दो माह बाद ग्राम पंचायत बजाड़ी मंे खजूरी तालाब गहरीकरण के लिए ब्.ेख् लाख रूपए की राशि रोजगार गारंटी येाजना के तहत स्वीकृति की गई. फ्क् मई को यह काम शुरू हुआ और फर्जी मस्टर रोल बनाकर जो लोग बाहर चले गए थे, उनका नाम दर्शाकर राशि हड़प ली गई. यही हाल छैलडोंगरी पंचायत का है, जहाँ चंद लोगों को मात्र म् दिन का रोजगार दिया गया और बाकी का फर्जी मस्टर रोल बनाकर पैसा हजम कर लिया गया. कुछ मजदूरों को अब यह धमकी भी दी जा रही है कि वे या तो वे अफसरों के बताए अनुसार काम करें अन्यथा उन्हें मजदूरी नहीं दी जाएगा. मुख्यमंत्री जरा इस ओर भी ध्यान दें.


पत्रकार का शब्दबाण


कुछ पत्रकारों ने देश घूमने का मू़ड बनाया. टूर पर जाने से पहले कुछ पत्रकार एक पूंजीपति के पास सहयोग लेने पहुुंचे. पूँजीपति ने उन्हें इज्जत के साथ बिठाया, और चाय नाश्ता कराते हुए पूछा कि कहाँ जाना है, और कितने पत्रकार जा रहे हैं? पत्रकारों से पूरी जानकारी लेकर पूंजीपति ने कालबेल बजाकर अपने चपरासी को बुलाया और एक पर्ची पर कुछ लिखकर एकाउन्टेंट के पास भेजा. कुछ देर बाद चपरासी एक लिफाफा लेकर आया. पूंजीपति ने वह लिफाफा पत्रकारों को थमा दिया.पत्रकार खुशी-खुशी लिफाफा लेकर बाहर निकले. लिफाफा खोलकर देखा तो उसमें क्०-क्० के मात्र क्० नोट और एक रूपए का सिक्का निकला. अब पत्रकारोें का चेहरा देखने लायक था. वे पूंजीपति को मजा चखाने की बात कहते हुए अपना सा मुँह लेकर वापस लौट आए.


यौन शिक्षा पर कार्यशाला का आयोजन



अंकुर विद्यालय एवं लायंस लब का संयुक्त आयोजन

अंकुर की वरिष्ठ विशेष शिक्षिका श्रीमती मीरा निम्जे ने बताया कि हमें बच्चों में ऐसी समस्याआें के बारे में तब महसूस हुआ, जब बच्चे बड़े होने लगे एवं उनके व्यवहार में परिवर्तन होने लगा. तब इसके बारें में अभिभावकों को प्रशिक्षण देना आवश्यक हो गया. मानसिक नि:शक्त एवं प्रमस्तिष्क अंगघात बच्चों में भी शारीरिक एवं भावनात्मक विकास होता है परंतु उसे वह अपनी मानसिक क्षमता कम होने के कारण अपने व्यवहार में प्रदर्शित करते हैं, जो समाज में उचित नहीं माना जाता.

कोरबा. अंकुर विशेष विद्यालय एवं लायंस लब बालकों के संयुक्त तत्वावधान में मानसिक नि:शक्त एवं प्रमस्ष्तिक अंगघात बच्चों के लैंगिंग समस्या एवं यौन शिक्षा विषय पर जूनियर लब सीएसईबी पूर्व में एक प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित की गई.

इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिलाधीश अशोक अग्रवाल एवं विशिष्ट अतिथि वीके सिंह, अध्यक्ष लायंस लब बालको विशेष रूप से उपस्थित थे. कार्यक्रम की शुरूआत दीप प्रज्वलन से किया गया एवं पुष्प गुच्छ से मुख्य अतिथि का स्वागत किया गया. अंकुर की प्राचार्या श्रीमती अरूंधती कुलकर्णी ने स्वागत भाषण दिया एवं अंकुर में होने वाली गतिविधियों के बारे में तथा कार्यक्रम का मुख्य उ ेश्य जो नि:शक्त के अभिभावकों को बच्चों में होने वाले लैंगिंक समस्या एवं यौन समस्या की जानकारी देना है, के बारे में बताया. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अशोक अग्रवाल ने कहा कि सामान्य बच्चों को पढ़ाना आसान है, लेकिन ऐसे नि:शक्त बच्चों को पढ़ाना आसान नहीं है, इनको पढ़ाने के लिये धैर्य की आवश्कयता होती है, जिस प्रकार अंकुर संस्था शहर के बच्चों के साथ गंाव के बच्चों के लिए यह कार्य कर रही है तथा यहां बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने का व्यवसायिक प्रशिक्षण दिया जा रहा है. वह सराहनीय है. उन्होंने बच्चों को सामान्य बच्चों के साथ शिक्षा देने के लिए प्राथमिक शिक्षकों को जिले का गौरव कहा तथा अभिभावकों को कार्यक्रम का अधिक से अधिक लाभ उठाने के लिए कहा. विशिष्ट अतिथि श्री सिंह ने कहा कि नि:शक्त बच्चों के समस्या के बारे में हमें जागरूक होना आवश्यक है.

उन्हांेनें कहा कि किसी भी सामाजिक कार्य को लोगों के सहयोग के बिना हम पूर्ण नहीं कर सकते.अंकुर की वरिष्ठ विशेष शिक्षिका श्रीमती मीरा निम्जे ने बताया कि हमें बच्चों में ऐसी समस्याआें के बारे में तब महसूस हुआ, जब बच्चे बड़े होने लगे एवं उनके व्यवहार में परिवर्तन होने लगा. तब इसके बारें में अभिभावकों को प्रशिक्षण देना आवश्यक हो गया. मानसिक नि:शक्त एवं प्रमस्तिष्क अंगघात बच्चों में भी शारीरिक एवं भावनात्मक विकास होता है परंतु उसे वह अपनी मानसिक क्षमता कम होने के कारण अपने व्यवहार में प्रदर्शित करते हैं, जो समाज में उचित नहीं माना जाता. अभिभावक यह सोचते हैं, कि इन बच्चों में बुदि्घ विकसित नहीं होने के कारण उनमें किसी प्रकार की शरीरिक आकर्षण संबंधित भावनाएं विकसित नहीं होती, परंतु ऐसा नहीं है, उनमें भी सभी भावनाएं विकसित होती हैं.उन्होंने कई बच्चों की समस्याआंें के बारे में विस्तार से बताया. डा.रजनी पांडे ने बच्चों के सेहत के लिए उचित भोजन के बारे में बताया एवं उनमें होने वाली लैंगिंक समस्याआें के बारे मंे बताया तथा किस प्रकार उनके व्यवहार में परिवर्तन होता है.उन्होंने कहा कि कुछ ऐसे हार्मोन के परिवर्तन होने से शरीर में परिवर्तन होता है. इस परिवर्तन को भोजन में विटामिन एवं प्रोटीन की उचित मात्रा देकर नियंत्रण किया जा सकता है. स्वपरायणता ऑटिज्म से ग्रसित बच्चों को दूध देना हानिकारक होता है. उन्हें मैग्रिशियम युक्त भोजन देना उनके सेहत के लिए अच्छा होता है. प्रमस्तिष्क अंगघात बच्चों के लिए पिजियोथेरेपी व व्यायाम करना आवश्यक बताया.इस विषय में अभिभावकों ने चर्चा की तथा उन्हें अपनी समस्याआें के बारे में बताया. डा. रजनी पांडे ने बताया कि मानसिक नि:शक्त बच्चों में भी सामान्य बच्चों की तरह ही सभी परिवर्तन सामान्य होते हैं. हमें उनकी प्रत्येक समस्या पर ध्यान देना आवश्यक है.

उन्होंने बच्चों के संरक्षक के लिए भरे जाने वाले लिगल गार्जियनशिप फार्म जो भविष्य में बच्चों की सुरक्षा के लिए होता है. यह नेशनल ट्रस्ट की देखरेख मंे होता है, जिसके अध्यक्ष जिलाधीश हंै,एवं अंकुर की प्राचार्या श्रीमती अरूंधती कुलकर्णी इसकी सदस्या हैं. यह बच्चे के संरक्षक के लिए भरा जाता है.यह फार्म अंकुर विशेष विद्यालय में उपलब्ध है. इन सबकी जानकारी डा. रजनी पांडे ने बहुत ही सरलता पूर्वक दी जिसकी सराहना सबने की.इस प्रशिक्षण में अंकुर की शाखाा समर्पण बाल नि:शक्त केंद्र व अंकुर के अभिभावक तथा लायंस लब समर्पण के सदस्य एवं अंकुर के अभिभावक लायंय लब बालको के सदस्य एवं अंकुर के समस्त स्टॉफ, टीम परियोजना के विशेष आचार्या सहित क्भ्० लोग उपस्थित हुए.



भूमि सुधार कार्यक्रम बढ़ाने की जरूरत


छत्तीसगढ़ में धान का उत्पादन कम होने के बहुत से कारण हैं जबकि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडू में धान उत्पादन के बढ़ने के भी कई कारण हैं. इन राज्यों ने धान की खेती बाद में करना शुरू की पर उसके साथ-साथ इन राज्यों में छत्तीसगढ़ की तुलना में सिंचाई और संसाधनों मंे बढ़ोतरी हुई पंजाब,हरियाणा पहले गेहूं, ज्वार, मक्का की फसल ही लेते थे और तराई के क्षेत्र में पैदा होने वाली धान से अपनी आवश्यकता पूरी करते थे. धान की खेती का स्वरूप गेहूं के खेतों से भिन्न होता है.

छत्तीसगढ़ में भूमि सुधार का ऐसा एक भी कार्यक्रम नहीं शुरू हुआ, जिससे खेती का रकबा बढ़ता और उन्नत खेती ली जाती. सन म्०-स्त्र० के दशक में अमरीकी पी.एल. फोर एट टी कार्यक्रम में खेती सुधार के कुछ कार्यक्रम, उन्नत बीज, चौफली और जापानी बोनी पद्घति शुरू हुई. उड़ीसा और छत्तीसगढ़ की खेती के लिये दूरदर्शन केंद्र भी रायपुर में बना. पर अपेक्षित लाभ नहीं मिल गया. इसके बाद धान की दूसरी ग्रीष्मकालीन फसल का भी प्रयोग किया गया जो पानी के अभाव में और कीड़े ज्यादा लगने के कारण सफल नहीं हो पाया.

समाचारों के अनुसार देश के सर्वाधिक धान उत्पादन करने वाले म् राज्यों की गणना में छत्तीसगढ़ शमिल नहीं हैै. छत्तीसगढ़ धान का कटोरा तो अभी है योंकि यहां की मुख्य फसल धान ही है पर अब अन्य राज्यों की तुलना में छत्तीसगढ़ में धान का उत्पादन कम है. दरअसल छत्तीसगढ़ में धान का उत्पादन पहले से ज्यादा ही है. वह सबसे बड़ा उत्पादक तब था जब अन्य राज्यों में धान का उत्पादन नहीं होता था.

छत्तीसगढ़ में धान का उत्पादन कम होने के बहुत से कारण हैं जबकि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडू में धान उत्पादन के बढ़ने के भी कई कारण हैं. इन राज्यों ने धान की खेती बाद में करना शुरू की पर उसके साथ-साथ इन राज्यों में छत्तीसगढ़ की तुलना में सिंचाई और संसाधनों मंे बढ़ोतरी हुई पंजाब,हरियाणा पहले गेहूं, ज्वार, मक्का की फसल ही लेते थे और तराई के क्षेत्र में पैदा होने वाली धान से अपनी आवश्यकता पूरी करते थे. धान की खेती का स्वरूप गेहूं के खेतों से भिन्न होता है. पानी संग्रह के लिये धान के खेतों की जमीन की ऊँचाई और मे़ड क्रमश: ऊपर से नीचे आती है. गेहूं की फसल की तरह खेत बड़े और बगैर मे़ढ वाले नहीं होते.पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश सहित दक्षिण के राज्यों में आधुनिक खेती के संसाधन बढ़े: ट्रै टर, सिंचाई बिजली के साथ ही उन्नत और कम समय में पैदावर देने वाले बीज भी अपनाये. नहीं उनका खेती का क्षेत्र दो से तीन फसली होता गया. इन राज्यों में भूमि सुधार कार्यक्रमों के कारण खेती का रकबा कम नहीं हुआ बल्कि बढ़ा और किसानों ने खेती की आत्म-निर्भरता बढ़ाई. इस कारण पंजाब, हरियाणा में एक सर्वे में एक हजार कराे़डपति पाये गये, जिनकी आय केवल खेती है.

छत्तीसगढ़ की कठिनाई यह रही है कि सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया. मध्यप्रदेश में यद्यपि छत्तीसगढ़ का सिंचाई प्रतिशत सबसे ज्यादा था पर सिंचाई संसाधनों का बहुत बड़ा प्रतिशत उद्योगों के काम आने लगा और आज भी स्थिति वही है. हसदेव, बांगों, गंगरेल जैसे बड़े बांध पहले उद्योगों और पेयजल की आपूर्ति करते हैं बाद में सिंचाई के लिये पानी उपलब्ध करा पाते हैं. पंजाब, हरियाणा की नहरें पक्की हैं, उसमें जमीन में पानी के भूमिगत होने की संभावना नगन्य है. छत्तीसगढ़ की नहरों को अभी तक पक्का नहीं किया गया है. विडम्बना यह है कि गंगरेल से रायपुर को दिया जाने वाला पेयजल अभी भी खुली नहर और नाली से आता है. यदि पाइप लाइन से लाया जाये तो आपूर्ति के आधे पानी से जरूरत पूरी हो सकती है. सिंचाई के पानी को सूखे और पझरने से बचाने के कोई उपाय नहीं किये गये जबकि वर्षा का भ्०-भ्भ् इंच का औसत प्रतिशत ख्भ् से फ्० इंच पर आ गया है, जिसका सबसे बड़ा कारण जंगलों की अंधाधंुध कटाई है.

छत्तीसगढ़ में भूमि सुधार का ऐसा एक भी कार्यक्रम नहीं शुरू हुआ, जिससे खेती का रकबा बढ़ता और उन्नत खेती ली जाती. सन म्०-स्त्र० के दशक में अमरीकी पी.एल. फोर एट टी कार्यक्रम में खेती सुधार के कुछ कार्यक्रम, उन्नत बीज, चौफली और जापानी बोनी पद्घति शुरू हुई. उड़ीसा और छत्तीसगढ़ की खेती के लिये दूरदर्शन केंद्र भी रायपुर में बना. पर अपेक्षित लाभ नहीं मिल गया. इसके बाद धान की दूसरी ग्रीष्मकालीन फसल का भी प्रयोग किया गया जो पानी के अभाव में और कीड़े ज्यादा लगने के कारण सफल नहीं हो पाया. कृषि विश्वविद्यालय मेंं डा. रिछारिया ने धान की लगभग फ्०० किस्में विकसित कीं. खासतौर पर गर्मी की फसल के लिये और े० दिन में पैदावार देने वाले बीज भी विकसित किये पर धान अनुसंधान कंेद्र राजनीति के दलदल में विलीन हो गया.

छत्तीसगढ़ यदि मध्यप्रदेश में कृषि के क्षेत्र मंे उपेक्षित रहा तो राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ की सरकार ने भूमि सुधार और खेती का रकबा और उत्पादन बढ़ाने का कोई कार्यक्रम प्राथमिकता में नहीं रखा.छत्तीसगढ़ सरकार ने धान की जगह उद्योगों की फसल उगाने को प्राथमिकता दी और प्रचार किया कि छत्तीसगढ़ औद्योगिक हर्ब बन रहा है.उद्योगों के लिये जमीन और अन्य सुविधायें प्रदान करने सरकार ने बड़ी मात्रा में खेती की जमीनों का अधिग्रहण किया और अभी भी यह क्रम जारी है, फलस्वरूप खेती का रकबा कम होता जा रहा है. ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है. रायपुर नगर के आसपास भ्० किलोमीटर के दायरे में पूरा ग्रीनबैल्ट समाप्त हो गया है और वहां की परंपरागत फसल उत्पादन की जगह उद्योगों और आवासी इमारतों की फसल तेजी से उग रही है और फलीभूत हो रही है. उद्योगों और भू-माफिया सरगनों ने किसानों को उनकी जमीन को सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी बनाने की सीख दी.मनमानी कीमत पर जमीनंे खरीद लीं. किसान बेचारा एक साथ सोने के अण्डे पाने की लालच मंे मुर्गी काटता जा रहा है. दुखद यह है कि इसमें सरकार सबसे बड़ी भागीदार है. जो जमीन किसान का पेट भरती थी वह अब उद्योग और सरकार में बदहजमी पैदा कर रही है. रायपुर के आसपास ही नहीं तहसीलों में भी लोग जमीन बेच रहे हैं और सरकार उसे रोक नहीं रही. छत्तीसगढ़ को जीने के लिये रूपया अकेला नहीं और भी बहुत कुछ चाहिये.हवा, पानी, खेती जंगल पर सरकार उदासीन है. छत्तीसगढ़ में धान की पैदावार बढ़ाने में राइस मिलों की भी भूमिका थी.वे किसान से फसल का अग्रिम सौदा कर उसे पैदावार बढ़ाने अग्रिम राशि भी देती थी.वह क्रम भी रूक गया है. यह पूरी तरह सवच नहीं है कि धान उत्पादन बढ़ा नहीं है. धान की जितनी बड़ी खरीदी हो रही है उतनी पहले नहीं होती थी, पर यह सच हैे कि धान का रकबा कम हुआ है और खेती के प्रति किसानों की रूचि कम होती जा रही है. छत्तीसगढ़ में सिंचाई के विस्तार के समय पंजाब और हरियाणा बनाने की बात की गई पर नीतियों ने उसे पंजाब हरियाणा की जगह कुछ ऐसा बना डाला है कि उसका सौन्दर्य बढ़ने की बजाय विकरालता बढ़ रही है. छत्तीसगढ़ का धान का कटोरा भरा रहे इसके लिये भूमि सुधार कार्यक्रमों की प्रथामिकता बढ़ाने की जरूरत है. सरकार चिंतन शिविर मंे सत्ता हथियाने का संकल्प लेती है, छत्तीसगढ़ को स्वर्ग बनाने का नहीं.

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