भिलाई महिला समाज के स्थापना दिवस पर विशेष
गरीब श्रमिक महिलायें तपती है भट्ठियों में और बहाती है पसीना
भिलाई महिला समाज ने दिशा व दशा बदलने में निभाई है अहम भूमिका
इस्पात नगरी भिलाई की अनेक श्रमिक महिलायें अपने परिश्रम के बल पर अपना तथा अपने परिवार की जीविका बखूबी चलाने में सक्षम हो गई हैं. इन परिवारों के बच्चे अनेक शैक्षणिक एवं तकनीकि संस्थानों में ज्ञानार्जन कर अपना भविष्य संवार रहे हैं. भिलाई महिला समाज ने ऐसे परिवारों की गरीब महिलाओं को समाज द्वारा संचालित उद्योगों में जीविका का साधन आबंटित कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महति प्रयास किया है. यानि संयंत्र के बाहर भी ये आत्मनिर्भर श्रमिक महिलायें, अपना परिवार चलाने की जुगत में गर्म भट्ठि यों में तपती हैं और अपना खून-पसीना बहाने में संयंत्र के पुरूष कर्मियों से कतई भी पीछे नहीं हैं. भिलाई महिला समाज की अध्यक्ष श्रीमती रेणुका रामराजू तथा उनके सहयोगियों की समय-समय पर हौसला अफजाई, इन महिला कर्मियों के उत्साहवर्धन में निश्चय ही उत्पेररक साबित होता है. गौरतलब है कि परिधीय क्षेत्र की गरीब महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के उ श्यों को लेकर ही भिलाई इस्पात संयंत्र के तत्कालीन जनरल मैनेजर श्री एन सी श्रीवास्तव ने भिलाई महिला समाज द्वारा स्थापना का नेक कार्य किया था. इसी कड़ी में वर्ष 2006 में भिलाई महिला समाज द्वारा स्थापित एवं संचालित भिलाई सेक्टर स्थित गृह उद्योग, परिधीय क्षेत्र की आर्थिक रूप से विपन्न महिलाओं के लिये एक प्रेरणास्त्रोत बनकर उभरा है. जहाँ वर्तमान मेंश्रमिक महिलायें साबुन, स्टेशनरी तथा रसोई में उपयोगी खाने का मसाला तैयार करने जैसे कार्य में कुछ पुरूष सहकर्मियों के साथ जुटीं रहती हैं.
भिलाई कैम्प ख् निवासी विधवा भ्भ् वर्षीया श्रीमती मनोरमा चौरसिया पिछले फ्भ् सालों से भिलाई महिला समाज द्वारा संचालित गृह उद्योगों से जु़डी हुई हैं तथा विभिन्न निर्माण कार्यों में सिद्घहस्थ भी हैं. पति की मृत्यु के उपरांत कंेद्र पर आश्रित आजीविका भी बखूबी चला रही हैं. उन्होंने समाज द्वारा सेक्टरब् में संचालित उद्योग में केनवास के कपड़े, संयंत्र कर्मियों की डांगरी व शाला गणवेश की सिलाई कार्य में भी अपने हुुनर दिखाये हैं. वर्तमान में सेक्टरक् स्थित उद्योग मेंे वे स्टेशनरी इकाई में अपनी सेवाएं दे रही हैं, जहाँ अन्य पाँच सहकर्मियों के साथ बुक बाईडिंग एवं उनकी सिलाई का कार्य उन्हें बख्ूाबी भाता है. पिता भिलाई इस्पात संयंत्र के कर्मचारी थे.वर्तमान में माँ तथा भाई के साथ ही रहती हैं. वे गर्व से कहती हैं-भिलाई महिला समाज ने अब उन्हें आत्मनिर्भर बनकर रहना सीखा दिया है. हंसते हुए बताती हैं अब उन्होंने अपनी बिटिया के हाथ भी पीले कर दिये हैं. उसे अब भविष्य की विशेष चिंता नहीं है. सेक्टरक्क् निवासी ख्त्त् वर्षीया श्रीमती मीना शिन्दे भी स्टेशनरी इकाई की कर्मठ महिला कर्मी हैं और पिछले मात्र फ् वर्षों से ही भिलाई महिला समाज का हिस्सा बनकर अपनी आजीविका बेहतर ढंग से चला रहीं हैं. अल्पायु में ही पिता की मृत्यु के उपरांत अपने फ् छोटे बच्चों तथा दोनों आँखों से लाचार सास के भविष्य की चिंता से परेशान थी. इसके पूर्व भिलाई इस्पात संयंत्र के प्रिंटिंग प्रेस में भी जॉब कार्य में हाथ बंटा चुकी है.
अब इस लघु उद्योग से जु़डकर अपने बच्चों को अच्छी तालीम भी दिला रही है. सुझाव देते हुए कहती हैं भिलाई इस्पात संयंत्र प्रबंधन यदि उनके बच्चों की पढ़ाई का दायित्व यदि संभाल ले तो उन्हें और राहत मिलेगी.श्रीमती मीना के अनुसार जीवन में संघर्ष तो है, परंतु उसे फिलहाल इसकी चिंता नहीं है. स्टेशनरी इकाई में ही कार्यरत बेसहारा श्रीमती शीला रामटेके, श्रीमती दानव लक्ष्मी, श्रीमती सुमन सिंह व श्रीमती रू मणी के भी कुछ इसी तरह के मिलते जुलते खयालात हैं. केंद्र में पिछले क्ब् वर्षो से जु़डी श्रीमती शीला ने अपनी कमाई से अपनी इकलौती पुत्री को इले ट्रॅानि स में डिप्लोमा (पॉलीटेकिन्क)भी कराया है. इस इकाई में रजिस्टर, पॉकेट नोट बुक, डॅायरियाँ, चॉक तथा शिक्षा विभाग, भिलाई इस्पात संयंत्र के लिये उत्तर पुस्तिकाओं का निर्माण कार्य संपादित होता है.
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