Saturday, August 4, 2007

छत्तीसगढ़ को शराब में न डुबायें

यशवंत वर्मा

बात-बात पर संस्कृति और नैतिकता की दुहाई देने वाली पार्टी के प्रशासन से तो कम से कम ऐसी उम्मीद नहीं थीं.हर जगह आसानी से उपलब्ध शराब,सार्वजनिक स्थानों पर बेखौफ होकर चलते पीने-पिलाने के अडड़े आज इस प्रदेश की पहचान बन चुके हैं, छोटे से छोटे कस्बे में जाइये या बड़े शहरों में , वहां के बस स्टेण्ड, रेलवे स्टेशन या मुख्य चौराहे पर एक अदद दारू का अड्डा निश्चित तौर पर मिलेगा. सामने ही छोटा सा लगा हुआ बाजार भी जहां अंडे, मांस और विभिन्न प्रकार के चखनों की दुकानें सजी रहेंगी. नशे में झूमते भारतीय नागरिकों के जत्थे एक के बाद एक आते रहेंगे, जोर-जोर से चीखने-चिल्लाते लोग, अपशब्दों की झड़ी लगाते एक दूसरे से उलझते लोग, आसपास से गुजरती महिलाओं , लड़कियों पर छीटाकशी करते.... यह एक आम दृश्य है. आसपास ही थाना या पुलिस चौकी भी होगी. उनमें बैठे इन नजारों को निहारतेे पुलिस कर्मी भी लेकिन धोखे में मत रहिए, थे पुलिस वाले आम नागरिक के बजाय शराब ठेकेदारों के कर्मचारियों की सुरक्षा करते हैं कानून यही कहता है कि सार्वजनिक स्थानों पर शराब पीने व पिलाने वालों को सजा मिलनी चाहिये, मद्यपान के लिये एक अहाता या एक बार होना चाहिये उसे भी लाइसेंसी होना चाहिये. लाईसेंस के नियम और शर्तों का पालन होना चाहिये. मगर खुले आसमान के तले,वर्दी धारी कानून के रक्षकों के नाक के नीचे यह या हो रहा है? मामला दर्पण की तरह साफ है. सरकार के भारी-भरकम खर्चे हैं. इसके लिये धन चाहिये. शराब की बिक्री से सरकार को करोडों रूपयों की आय होती है. इस आमदनी को वह कैसे छोड दे. गांव का गांव बर्बाद हो जाये, शहर में आग लग जाये उन्हें इससे या वास्ता, सरकार पाँच साल के लिये बनी है. अत:पाँच साल तक उसे पालना भी है. सरकारी गाड़ी पेट्रोल से चलती है, संस्कृति, नैतिकता, आदर्श...इन किताबी बातों से नहीं.
गांवों की स्थिति और भी दयनीय है. जिस प्रकार बहुराष्ट ्रीय कंपनियाँ अपने उत्पाद बेचने के लिये नेटवर्क फैलाते हैं ठीक उसी प्रकार शराब माफिया योजनाबद्घ तरीके से सीधे-सीधे ग्रामीणों को देशी-विदेशी शराब की लत लगवा रहे हैं. शुरूआत होती है चुनावों से, पंचायती राज में चुनाव, कभी मंडी चुनाव,कभी पानी चुनाव तो कभी सहकारिता चुनाव, चुनावों में अब कंबल,धोती, साड़ी बांटने के दिन लद गये. अब तो शराब की नदियां बहती हैं, शराब ठेकेदारों को अपने खेतों में बीज डालने के लिये यही चुनावी मौसम उपयुक्त लगाता है. वह दोनों पक्षों को लगभग मुफत मंे गैलनों शराब मुहैया कराता है. वह शराब मतदाताओं मंे बंटती है. यहीं समय होता है. जब बड़ों के साथ-साथ पंद्रह-सोलह साल के बच्चे भी इसके आदी हो जाते हैं. दस पंद्रह दिन मुफत का शराब पीते-पीते ग्रामीणों में इसकी लत लग जाती हैं. चुनाव निबटने तक ठेकेदारों की फसल पक चुकी होती है. शराब के चुंगल में फंसे ग्रामीण अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा इसमें बर्बाद करने लग जाते हैं, घर और समाज में कलह का आगाज हो जाता है. सरपंचों पर दबाव डाला जाता है कि वह गांव में भटठी खुलने दें.अगर कोई उन्हें नकारने की हिमाकंत करें तो उनकी खैर नहीं. शराब ठेकेदार के पंडे,लठैत वहां आतंक का माहौल बनाते हैं. गांव के ही किसी व्यक्ति को लालच देकर अवैध शराब बिकवाते हैं. सरपंच और ग्रामीण बेबस होकर अपने गांव को बर्बाद होता देखते रह जाते हैं. फरियाद करें तो किससे करें. गांव-गांव की सीमाओं पर वैध-अवैध शराब के ठेके आबाद हैं. बाहरी प्रदेशों से बुलवाये गये इन पंडों, लठैतों की उ ंडता देखकर लगता ही नहीं यहां कानून नाम की कोई चिड़िया भी है. स्थिति अत्यंत विस्फोटक हो चुकी है. गंाव वाले यह मान बैठे हैं कि कानून के द्वारा इनसे नहीं लड़ा जा सकता, थाने जैसे इनकी सुरक्षा में खड़े हैं. ग्रामीण कानून हाथ में ले रहे हैं. आये दिन अखबारों में ग्रामीणों के साथ इन लठैतों की हिंसक लड़ाईयां सुर्खियां बन रही हैं. कुछ वर्ष पहले दुर्ग के पलारी नामक गांव में पुलिस अधिकारी की हत्या गांव वालों के हाथों हो चुकी है. ग्रामीणों को इसी बात का आक्रोश था कि पुलिस शराब कोचिया को संरक्षण दे रही है. या प्रशासन इस बात से अनभिज्ञ है कि शराब ठेकेदारों द्वारा प्रदेश के दोनों प्रमुख दल के छुटभैये नेताओं को विशेष अधिकार दिया गया है, जिसके अंतर्गत वह अपने लोगों को पर्ची पर हस्ताक्षर कर दे रहे हैं जिसके द्वारा वांछित व्यक्ति को रियायती दर पर शराब उपलब्ध हो जाती है. ये आधुनिक राजनीतिज्ञ इसी तरह अपने मतदाताओं की सेवा कर रहे हैं. दाता भी खुश और मतदाता भी. स्थिति यह है कि छत्तीसगढ़ के गंावों में विशुद्घ धार्मिक आयोजनों और शोक के कार्यक्रमों में भी शराब परोसने का चलन हो चुका है. इससे बदतर स्थिति और कुछ नहीं हो सकती. सरल, निर्विवाद छवि के धनी डॉ. रमन सिंह को इस भयावह स्थिति का आंकलन जरूर करनी चाहिये. उन्हें स्टेट बेरवरेज कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष सच्चिदानंद उपासने से इन तथ्यों की पड़ताल करना चाहिये कि यों शराब लॉबी को इतना निरंकुश बना दिया गया है.
या अध्यक्ष महोदय सरकारी आय का लक्ष्य पूरा करना ही अपना एक मात्र कर्तव्य समझते हैं? शराब के दुष्प्रभावों से ग्रामीणों के लड़खती आर्थिक और सामाजिक ढांचे से उन्हंे और उनकी पार्टी को कोई सरोकार नहीं? यहां के पुरूष वर्ग तो अब विरोध की स्थिति मंे भी नहीं हैं. शराब बंदी के लिये जितने आंदोलन छत्तीसगढ़ में हुए हैं,सभी की कमान महिलाओं के हाथों में रही है. मद्यनिषेध के सरकारी विज्ञापन भी अब कहीं देखने नहीं मिलते. आबकारी विभाग इतना शिथिल यों हैं? आखिर और कितने भानसोज,कितने पलारी,कितने रायपुरा कांडों के बाद सरकार जागेगी?

4 comments:

Dhanendra said...

36 garhi samachar ptrika ek bahoot hi acchha prayas hai. es samachar ptra ke madhyam se CG ke kaphi log prabhavit honge.CG ke vikas me CG DAINIK SAMACHAR PATRA kaphi sahayak hoga.
CG SAMACHAR PATRA CG sarkar ki ek prashanshniy uplabdhi hogi.
Google ke madhyam se ab mai bhopal me rhkag bhi CG SAMACHAR ka cg bhasa me luft utha sakta hoooooooooo.
"Thanks"

Dhanendra said...

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Dhanendra

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