Saturday, August 4, 2007

झूम उठे कि आया सावन...

बूँदों ने दी दस्तक,
कलियों के पारे-पोर मुस्काए,
हर चेहरा खिलखिलाया,
जब सावन झूमकर आया...
पत्तियों पर पानी की मोती-सी बूँदें,हँसते-खिलखिलाते चेहरे,हर ओर हरियाली और हो भी यों न भला, सावन का सुहावना मौसम जो आ गया है. इस मौके को कोई भी गँवाना नहीं चाहता और इसके हर रंग को अपने अंदर भर लेना चाहता है. कहीं लड़कियों का झुँड झूलों का आनंद ले रहा होता है तो कहीं बच्चे कागज की कश्तियों से अपना मनोरंजन करते मिल जाते हैं. सबका अंदाज अलग भले हो, लेकिन मौका है हरियाली के स्वागत का. कहा जाता है कि सावन के अंधे को सबकुछ हरा ही नजर आता है, जब चारों ओर हरियाली-ही-हरियाली हो तो भला ये चूक तो हो ही जाएगी.
जिस तरह सावन के साथ खुशियों और उमंगों का चोली-दामन का साथ है, वैसे ही इसके साथ कई मान्यताएँ और परंपराएंँ भी जु़डी हुई हैं. देश के कई हिस्सों में इस मौसम मंे पर्व-त्योहारों का आयेाजन होता है. ऐसा माना जाता है कि सावन महीना खासतौर से शिवजी की आराधना से जु़डा होता है. मंदिरों में जोर-शोर से शिवजी की पूजा-अर्चना और श्रृँगार का वातावरण होता है.इस मौके पर लोग पूरे मास सोमवार का व्रत रखते हैं. महिलाएँ अपनी हथलियों पर मंेहदी रचाती है और तरह-तरह के पकवानों से भगवान को भोग लगाती है. ऐसा माना जाता है कि इस मास मंे उपवास रखने से कँुवारी लड़कियों को मनचाहा वर मिलता है. इसलिए वो भी पूरे उत्साह और उमंग के साथ शिवजी की आराधना करती हैं.
महत्ता
सावन का महत्व कई क्षेत्रों में अत्याधिक है. झारखंड राज्य का देवघर सावन के आते ही बम-भोले के नारों से गुँजायमान हो उठता है. बिहार के साथ-साथ कई राज्यों से लोग काँवड़ कंधे पर उठाए शिवजी के दर्शन को आते हैं. यहाँ मंदिर में शिवजी की एक झलक पाने और जल चढ़ाने के लिए लंबी कतारों में लोग घंटों खड़े रहते हैं.पूरा माहौल भक्तिमय हो उठता है.कई लोग जो डाक बम काँवडियां कहलाते हैं, बिना रूके बाबा धाम की क्०त्त् किलोमीटर की यात्रा पूरी कर जल चढ़ाते हैं. लाखों की संख्या मंे भक्तों की भीड़ होती है, जिससे हर उम्र के लोग पूरी भक्ति-भावना से शामिल होते है.
रिवाज
बिहार और झारखंड राज्यों में श्रावण महीने में नवविवाहिता ब्राह्णण स्त्रियाँ मधु श्रावणी करती हैं,जिसमें शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है. यह क्ब् दिनों तक चलता है. इस दौरान स्त्रियाँ नमकयुक्त भोजना नहीं करतीं. ससुराल पक्ष द्वारा भेज दी गई पूजा सामग्री से ही पूजा संपन्न होती है. पूजा के चौदहवें दिन औरतों को भोजन पर आमंत्रित किया जाता है, जो शादी के मौके जैसा ही प्रतीत होता है.इसी तरह देश के अन्य हिस्सों में सावन महीने को पूरे रीति-रिवाज के साथ मनाया जाता है. कई क्षेत्रों में मायके से बेटियों को नए कपड़े और गहने भी भिजवाए जाते हैं और घर में एक उत्सव का माहौल रहता है. इस महीने में लोग अलग-अलग प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन और पकवान तैयार करते हैं. महिलाएँ समूह में इकठ्ठ ाा होकर आँगन या बगीचे में सावन के गीत गाती हैं,झूलने का आनंद उठाती हैं और तरह-तरह के पकवानों और अठखेलियों का मजा लेती हैं. उनका उत्साह देखते ही बनता है. रंग-बिरंगी साड़ियाँ और सोलह श्रृँगार करके जब ये महिलाएँ भगवान कृष्ण की पालकी तैयार कतरी हैं तो महौल भक्ति से सराबोर हो उठता है. वे कई तरह के हासपरिहास का भी आनंद लेती है. इन दृश्यों को देखने के बाद ऐसा आभास होता है कि सावन की छटा मौसम के साथ-साथ लोगों को भी अपने मोहपाश मंे बाँध लेती है.

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