- अब्दुल मजीद
शहर का हर दूसरा तीसरा आदमी आज सामाजिक बनने पर तुला हुआ है. आज हर व्यक्ति को समाज का महत्व पता चल गया है. कहते हैं पढ़ लिखकर व्यक्ति जागरूक हो जाता है. इसके साथ ही साथ एक युक्ति और प्रचलित है. पढ़ने के साथ-साथ आदमी को कढ़ना भी चाहिए. यदि आदमी पढ़ा और कढ़ा मतलब जीवन का कटु अनुभव रखने वाला हो तो सोने पर सुहागा. पुराने जमाने में जंगली कबिले तक संगठित होकर रहते थे. उन्हांेने संगठन का मतलब आदिकाल में ही जान लिया था. लेकिन जैसे-जैसे समाज में शिक्षा का महत्व बढ़ने लगा और लोग शिक्षित होकर जागरूक होने लगे वे आत्मकेन्द्रित हो गए आज जीवन में इतनी भागमभाग और आपाधापी मची है कि लोगों को समाज से मिलने की फुर्सत की बात तो छोड़िए अपने घर-परिवार से मिलने का समय नहीं मिलता. सुबह घर से निकलों तो आधी रात तक ही घर वापस लौटना संभव हो पाता है. केवल पत्नी ही पति का चेहरा देख पाती है. बच्चे और दूसरे लोग नहीं.जहाँ पति-पत्नि दोनों रोजगार से जुडे होते हैं, वहाँ सुबह शाम ही मिलना हो पाता है. विदेशों में तो हालत यह है कि पत्नी जब सुबह काम पर जाती है तो पति सोए रहते हैं, और जब पति नाईट शिफट पर जाते हैं तो पत्नी सो जाती है. हफते-हफते तक पति-पत्नि एक दूसरे का चेहरा नहीं देख पाते. केवल रविवार को छुट्ट ी वाले दिन ही मिलना हो पाता है. और यदि बच्चे हुए तो उसे आया संभाल लेती है. पैसा कमाने की धुन में मशीन बनता आदमी कई बार तो अपने समाज और बिरादरी से इस कदर कट जाते हैं कि वे नितांत अलग-थलग पड़ जाते हैं. शहर में अनेकों ऐसे लोग हैं जो समाज से तो कटे ही हुए हैं अपनी जाति बिरादरी से भी कट गए हैं. जाति छुपाने के चक्कर में वे अपनी जाति बिरादरी और समाज से इस कदर कट जाते हैं कि उन्हें होश तब आता है, जब बच्चे जवान होकर शादी ब्याह करने लायक हो जाते हैं. बच्चों के रिश्ते जोडने में जब मुसीबतें सामने आने लगती हैं तो समाज, बिरादरी और जाति का ख्याल आ जाता है. तब लगता है कि अपना भी समाज होता तो कि तनी अच्छी बात होती.
समाज का महत्व कितनी अहमियत रखता है, इसे आज का शिक्षित समाज बड़ी गंभीरता से समझता है. समाज के बारे में एक समाज सेवी का यह कहना है कि शासन प्रशासन पर दबाव डालने के लिए समाज को संगठित करना जरूरी है. एक अन्य सज्जन का तो यहां तक कहना था कि, पुलिस प्रशासन पर दबाव डालने के लिए समाज का प्रभाव जरूरी है. यह तो जाहिर सी बात है कि हर चीज का दुरूपयोग होता ही है. समाज के गठन में भी दुरूपयोग की भावना सिरे से काम करती है. जिस बड़ी संख्या मंे समाज का गठन आज हो रहा है, या ही अच्छा होता वह कमजोर लोगों को मदद देन, गरीब बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और बीमारों की सहायता व उनकी बेहतरी के लिए समाज कुछ अच्छा कर दिखाता.
मतदाताओं की फोटोग्राफी
शहर में नहीं
मतदाताओं की फोटोग्राफी शहर में कर उनका परिचय पत्र बनाने का काम अभी भिलाई में शुरू नहीं किया गया है. नए परिचय पत्र लेकर वोट डालने को उत्सुक शहर का युवा वर्ग यह समझ नहीं पा रहा है कि उन्हंे कहाँ जाकर या करना चाहिए. निर्वाचन आयोग के जिला अधिकारी अथवा प्रशासनिक स्तर पर समाचार पत्रों में भी ऐसी कोई जानकारी नहीं दी जा रही है, जिससे मतदाताओं को भटकना न पड़े. नए नाम जु़डवाने के साथ ही साथ नाम परिवर्तन कराने वालों को भी मार्गदर्शन की आवश्यकता है. जिले में कुल कितने मतदाता हैं, इसकी सूची भी जल्दी ही प्रशासन को जारी करनी चाहिए. ज्ञात हो कि ड़ेढ साल बाद राज्य में विधानसभा के चुनाव होना तय है, ऐसे में परिचय पत्र मोैके पर ही बनाने के लिए फोटोग्राफी का काम जल्दी शुरू किए जाने की जरूरत आम जनता महसूस कर रही है. फोटोग्राफी कब और कहाँ-कहाँ होनी है, इसका भी भरपूर प्रचार प्रसार होना चाहिए.
राशन कार्ड बनाने वाले भी भटक रहे
निगम क्षेत्र में राशन कार्ड बनाने वाले लोग भटक रहे हैं. निगम ने अपनी तरफ से क्षेत्रानुसार राशन कार्ड बनाने की व्यवस्था कर दी है, लेकिन जब लोग निगम के क्षेत्रीय कार्यालय में पहुँचते हैं तो अधिकारी उन्हें यह कहकर वापस कर देते हैं कि पहले आप बी डब्लू सीसीएस से अनापत्ति प्रमाण पत्र लाईए.अब लोगों को यह समझ नहीं आ रहा है कि उन्हें बीडब्लू सीसीएस यों जाना चाहिए. कुल मिलाकर लोग भटक रहे हैं और उनका राशन कार्ड नहीं बन रहा है. इससे उन्हें अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है.निगम के बड़ेअधिकारी तो अपनी मनमानी जमकर कर ही रहे हैं, लेकिन कर्मचारी ले देकर मामला सलटाने में लगे हैं. आखिर साडा वाली आदद कब छुटेगी निगम कर्मचारियों की?
शहर का हर दूसरा तीसरा आदमी आज सामाजिक बनने पर तुला हुआ है. आज हर व्यक्ति को समाज का महत्व पता चल गया है. कहते हैं पढ़ लिखकर व्यक्ति जागरूक हो जाता है. इसके साथ ही साथ एक युक्ति और प्रचलित है. पढ़ने के साथ-साथ आदमी को कढ़ना भी चाहिए. यदि आदमी पढ़ा और कढ़ा मतलब जीवन का कटु अनुभव रखने वाला हो तो सोने पर सुहागा. पुराने जमाने में जंगली कबिले तक संगठित होकर रहते थे. उन्हांेने संगठन का मतलब आदिकाल में ही जान लिया था. लेकिन जैसे-जैसे समाज में शिक्षा का महत्व बढ़ने लगा और लोग शिक्षित होकर जागरूक होने लगे वे आत्मकेन्द्रित हो गए आज जीवन में इतनी भागमभाग और आपाधापी मची है कि लोगों को समाज से मिलने की फुर्सत की बात तो छोड़िए अपने घर-परिवार से मिलने का समय नहीं मिलता. सुबह घर से निकलों तो आधी रात तक ही घर वापस लौटना संभव हो पाता है. केवल पत्नी ही पति का चेहरा देख पाती है. बच्चे और दूसरे लोग नहीं.जहाँ पति-पत्नि दोनों रोजगार से जुडे होते हैं, वहाँ सुबह शाम ही मिलना हो पाता है. विदेशों में तो हालत यह है कि पत्नी जब सुबह काम पर जाती है तो पति सोए रहते हैं, और जब पति नाईट शिफट पर जाते हैं तो पत्नी सो जाती है. हफते-हफते तक पति-पत्नि एक दूसरे का चेहरा नहीं देख पाते. केवल रविवार को छुट्ट ी वाले दिन ही मिलना हो पाता है. और यदि बच्चे हुए तो उसे आया संभाल लेती है. पैसा कमाने की धुन में मशीन बनता आदमी कई बार तो अपने समाज और बिरादरी से इस कदर कट जाते हैं कि वे नितांत अलग-थलग पड़ जाते हैं. शहर में अनेकों ऐसे लोग हैं जो समाज से तो कटे ही हुए हैं अपनी जाति बिरादरी से भी कट गए हैं. जाति छुपाने के चक्कर में वे अपनी जाति बिरादरी और समाज से इस कदर कट जाते हैं कि उन्हें होश तब आता है, जब बच्चे जवान होकर शादी ब्याह करने लायक हो जाते हैं. बच्चों के रिश्ते जोडने में जब मुसीबतें सामने आने लगती हैं तो समाज, बिरादरी और जाति का ख्याल आ जाता है. तब लगता है कि अपना भी समाज होता तो कि तनी अच्छी बात होती.
समाज का महत्व कितनी अहमियत रखता है, इसे आज का शिक्षित समाज बड़ी गंभीरता से समझता है. समाज के बारे में एक समाज सेवी का यह कहना है कि शासन प्रशासन पर दबाव डालने के लिए समाज को संगठित करना जरूरी है. एक अन्य सज्जन का तो यहां तक कहना था कि, पुलिस प्रशासन पर दबाव डालने के लिए समाज का प्रभाव जरूरी है. यह तो जाहिर सी बात है कि हर चीज का दुरूपयोग होता ही है. समाज के गठन में भी दुरूपयोग की भावना सिरे से काम करती है. जिस बड़ी संख्या मंे समाज का गठन आज हो रहा है, या ही अच्छा होता वह कमजोर लोगों को मदद देन, गरीब बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और बीमारों की सहायता व उनकी बेहतरी के लिए समाज कुछ अच्छा कर दिखाता.
मतदाताओं की फोटोग्राफी
शहर में नहीं
मतदाताओं की फोटोग्राफी शहर में कर उनका परिचय पत्र बनाने का काम अभी भिलाई में शुरू नहीं किया गया है. नए परिचय पत्र लेकर वोट डालने को उत्सुक शहर का युवा वर्ग यह समझ नहीं पा रहा है कि उन्हंे कहाँ जाकर या करना चाहिए. निर्वाचन आयोग के जिला अधिकारी अथवा प्रशासनिक स्तर पर समाचार पत्रों में भी ऐसी कोई जानकारी नहीं दी जा रही है, जिससे मतदाताओं को भटकना न पड़े. नए नाम जु़डवाने के साथ ही साथ नाम परिवर्तन कराने वालों को भी मार्गदर्शन की आवश्यकता है. जिले में कुल कितने मतदाता हैं, इसकी सूची भी जल्दी ही प्रशासन को जारी करनी चाहिए. ज्ञात हो कि ड़ेढ साल बाद राज्य में विधानसभा के चुनाव होना तय है, ऐसे में परिचय पत्र मोैके पर ही बनाने के लिए फोटोग्राफी का काम जल्दी शुरू किए जाने की जरूरत आम जनता महसूस कर रही है. फोटोग्राफी कब और कहाँ-कहाँ होनी है, इसका भी भरपूर प्रचार प्रसार होना चाहिए.
राशन कार्ड बनाने वाले भी भटक रहे
निगम क्षेत्र में राशन कार्ड बनाने वाले लोग भटक रहे हैं. निगम ने अपनी तरफ से क्षेत्रानुसार राशन कार्ड बनाने की व्यवस्था कर दी है, लेकिन जब लोग निगम के क्षेत्रीय कार्यालय में पहुँचते हैं तो अधिकारी उन्हें यह कहकर वापस कर देते हैं कि पहले आप बी डब्लू सीसीएस से अनापत्ति प्रमाण पत्र लाईए.अब लोगों को यह समझ नहीं आ रहा है कि उन्हें बीडब्लू सीसीएस यों जाना चाहिए. कुल मिलाकर लोग भटक रहे हैं और उनका राशन कार्ड नहीं बन रहा है. इससे उन्हें अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है.निगम के बड़ेअधिकारी तो अपनी मनमानी जमकर कर ही रहे हैं, लेकिन कर्मचारी ले देकर मामला सलटाने में लगे हैं. आखिर साडा वाली आदद कब छुटेगी निगम कर्मचारियों की?
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